वान्तरसत्ता च । तत्र सर्वपदार्थसार्थव्यापिनी साद्रश्यास्तित्वसूचिका महासत्ता प्रोक्तै व ।
अन्या तु प्रतिनियतवस्तुवर्तिनी स्वरूपास्तित्वसूचिकाऽवान्तरसत्ता । तत्र महासत्ता-
ऽवान्तरसत्तारूपेणाऽसत्ताऽवान्तरसत्ता च महासत्तारूपेणाऽसत्तेत्यसत्ता सत्तायाः । येन
स्वरूपेणोत्पादस्तत्तथोत्पादैकलक्षणमेव, येन स्वरूपेणोच्छेदस्तत्तथोच्छेदैकलक्षणमेव, येन स्वरूपेण ध्रौव्यं तत्तथा ध्रौव्यैकलक्षणमेव, तत उत्पद्यमानोच्छिद्यमानावतिष्ठमानानां वस्तुनः स्वरूपाणां प्रत्येकं त्रैलक्षण्याभावादत्रिलक्षणत्वं त्रिलक्षणायाः । एकस्य वस्तुनः स्वरूपसत्ता नान्यस्य वस्तुनः स्वरूपसत्ता भवतीत्यनेकत्वमेकस्याः । प्रतिनियतपदार्थ-
स्थिताभिरेव सत्ताभिः पदार्थानां प्रतिनियमो भवतीत्येकपदार्थस्थितत्वं सर्वपदार्थ- स्थितायाः । प्रतिनियतैकरूपाभिरेव सत्ताभिः प्रतिनियतैकरूपत्वं वस्तूनां भवतीत्येक-
सूचवनारी महासत्ता (सामान्यसत्ता) तो कहेवाई ज गई. बीजी, प्रतिनिश्चित (-एकेक निश्चित) वस्तुमां रहेनारी, स्वरूप-अस्तित्वने सूचवनारी अवान्तरसत्ता (विशेषसत्ता) छे. (१) त्यां महासत्ता अवान्तरसत्तारूपे असत्ता छे अने अवान्तरसत्ता महासत्तारूपे असत्ता छे तेथी सत्ताने असत्ता छे (अर्थात् जे सामान्यविशेषात्मक सत्ता महासत्तारूप होवाथी ‘सत्ता’ छे ते ज अवान्तरसत्तारूप पण होवाथी ‘असत्ता’ पण छे). (२) जे स्वरूपे उत्पाद छे तेनुं (-ते स्वरूपनुं) ते रीते उत्पाद एक ज लक्षण छे, जे स्वरूपे व्यय छे तेनुं (-ते स्वरूपनुं) ते रीते व्यय एक ज लक्षण छे अने जे स्वरूपे ध्रौव्य छे तेनुं (ते स्वरूपनुं) ते रीते ध्रौव्य एक ज लक्षण छे तेथी वस्तुना ऊपजता, नष्ट थता अने ध्रुव रहेता स्वरूपोमांना प्रत्येकने त्रिलक्षणनो अभाव होवाथी त्रिलक्षणा(सत्ता)ने अत्रिलक्षणपणुं छे. (अर्थात् जे सामान्यविशेषात्मक सत्ता महासत्तारूप होवाथी ‘त्रिलक्षणा’ छे ते ज अहीं कहेली अवान्तरसत्तारूप पण होवाथी ‘अत्रिलक्षणा’ पण छे). (३) एक वस्तुनी स्वरूपसत्ता अन्य वस्तुनी स्वरूपसत्ता नथी तेथी एक (सत्ता)ने अनेकपणुं छे (अर्थात् जे सामान्यविशेषात्मक सत्ता महासत्तारूप होवाथी ‘एक’ छे ते ज अहीं कहेली अवान्तरसत्तारूप पण होवाथी ‘अनेक’ पण छे). (४) प्रतिनिश्चित (-व्यक्तिगत निश्चित) पदार्थमां स्थित सत्ताओ वडे ज पदार्थोनुं प्रतिनिश्चितपणुं (-भिन्न- भिन्न निश्चित व्यक्तित्व) होय छे तेथी सर्वपदार्थस्थित(सत्ता)ने एकपदार्थस्थितपणुं छे (अर्थात् जे सामान्यविशेषात्मक सत्ता महासत्तारूप होवाथी ‘सर्वपदार्थस्थित’ छे ते ज अहीं कहेली अवान्तरसत्तारूप पण होवाथी ‘एकपदार्थस्थित’ पण छे.) (५) प्रतिनिश्चित एक एक रूपवाळी सत्ताओ वडे ज वस्तुओनुं प्रतिनिश्चित एक एक रूप होय छे तेथी