Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 22 of 256
PDF/HTML Page 62 of 296

 

पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

रूपत्वं सविश्वरूपायाः प्रतिपर्यायनियताभिरेव सत्ताभिः प्रतिनियतैकपर्यायाणामानन्त्यं भवतीत्येकपर्यायत्वमनन्तपर्यायायाः इति सर्वमनवद्यं सामान्यविशेषप्ररूपणप्रवणनय- द्वयायत्तत्वात्तद्देशनायाः ।।।।


सविश्वरूप(सत्ता)ने एकरूपपणुं छे (अर्थात् जे सामान्यविशेषात्मक सत्ता महासत्तारूप होवाथी ‘सविश्वरूप’ छे ते ज अहीं कहेली अवान्तरसत्तारूप पण होवाथी ‘एकरूप पण छे). (६) प्रत्येक पर्यायमां रहेली (व्यक्तिगत भिन्नभिन्न) सत्ताओ वडे ज प्रतिनिश्चित एक एक पर्यायोनुं अनंतपणुं थाय छे तेथी अनंतपर्यायमय(सत्ता)ने एकपर्यायमयपणुं छे (अर्थात् जे सामान्यविशेषात्मक सत्ता महासत्तारूप होवाथी ‘अनंतपर्यायमय’ छे ते ज अहीं कहेली अवान्तरसत्तारूप पण होवाथी ‘एकपर्यायमय’ पण छे).

आ रीते बधुं निरवद्य छे (अर्थात् उपर कहेलुं सर्व स्वरूप निर्दोष छे, निर्बाध छे, किंचित् विरोधवाळुं नथी) कारण के तेनुं (-सत्ताना स्वरूपनुं) कथन सामान्य अने विशेषना प्ररूपण प्रत्ये ढळता बे नयोने आधीन छे.

भावार्थसामान्यविशेषात्मक सत्तानां बे पडखां छेएक पडखुं ते महासत्ता अने बीजुं पडखुं ते अवान्तरसत्ता. (१) महासत्ता अवान्तरसत्तारूपे असत्ता छे अने अवान्तरसत्ता महासत्तारूपे असत्ता छे; तेथी जो महासत्ताने ‘सत्ता’ कहीए तो अवान्तरसत्ताने ‘असत्ता’ कहेवाय. (२) महासत्ता उत्पाद, व्यय अने ध्रौव्य एवां त्रण लक्षणवाळी छे तेथी ते ‘त्रिलक्षणा’ छे. वस्तुना ऊपजता स्वरूपनुं उत्पाद ज एक लक्षण छे, नष्ट थता स्वरूपनुं व्यय ज एक लक्षण छे अने ध्रुव रहेता स्वरूपनुं ध्रौव्य ज एक लक्षण छे तेथी ते त्रण स्वरूपोमांना प्रत्येकनी अवान्तरसत्ता एक ज लक्षणवाळी होवाथी ‘अत्रिलक्षणा’ छे. (३) महासत्ता समस्त पदार्थसमूहमां ‘सत, सत, सत्’ एवुं समानपणुं दर्शावती होवाथी एक छे. एक वस्तुनी स्वरूपसत्ता बीजी कोई वस्तुनी स्वरूपसत्ता नथी, तेथी जेटली वस्तुओ तेटली स्वरूपसत्ताओ; माटे आवी स्वरूपसत्ताओ अथवा अवान्तरसत्ताओ ‘अनेक’ छे. (४) सर्व पदार्थो सत् छे तेथी महासत्ता ‘सर्व पदार्थोमां रहेली’ छे. व्यक्तिगत पदार्थोमां रहेली भिन्नभिन्न व्यक्तिगत सत्ताओ वडे ज पदार्थोनुं भिन्नभिन्न निश्चित व्यक्तित्व रही शके, तेथी ते ते पदार्थनी अवान्तरसत्ता ते ते ‘एक पदार्थमां ज स्थित’ छे. (५) महासत्ता समस्त वस्तुसमूहनां रूपो (स्वभावो) सहित छे तेथी ते ‘सविश्वरूप’ (सर्वरूपवाळी) छे. वस्तुनी सत्तानुं (कथंचित्) एक रूप होय तो ज ते वस्तुनुं निश्चित एक रूप (-चोक्कस एक स्वभाव)

२२