Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 10.

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

सद्भावपर्यायान् स्वभावविशेषानित्यनुगतार्थया निरुक्त्या द्रव्यं व्याख्यातम् द्रव्यं च लक्ष्यलक्षणभावादिभ्यः कथञ्चिद्भेदेऽपि वस्तुतः सत्ताया अपृथग्भूतमेवेति मन्तव्यम् ततो यत्पूर्वं सत्त्वमसत्त्वं त्रिलक्षणत्वमत्रिलक्षणत्वमेकत्वमनेकत्वं सर्वपदार्थस्थितत्वमेक- पदार्थस्थितत्वं विश्वरूपत्वमेकरूपत्वमनन्तपर्यायत्वमेकपर्यायत्वं च प्रतिपादितं सत्ताया- स्तत्सर्वं तदनर्थान्तरभूतस्य द्रव्यस्यैव द्रष्टव्यम् ततो न कश्चिदपि तेषु सत्ता- विशेषोऽवशिष्येत यः सत्तां वस्तुतो द्रव्यात्पृथक् व्यवस्थापयेदिति ।।।।

दव्वं सल्लक्खणियं उप्पादव्वयधुवत्तसंजुत्तं
गुणपज्जयासयं वा जं तं भण्णंति सव्वण्हू ।।१०।।

द्रवे छेपामे छेसामान्यरूप स्वरूपे व्यापे छे ते द्रव्य छे’एम अनुगत अर्थवाळी निरुक्तिथी द्रव्यनी व्याख्या करवामां आवी. वळी जोके लक्ष्यलक्षणभावादिक द्वारा द्रव्यने सत्ताथी कथंचित् भेद छे तोपण वस्तुतः (परमार्थे) द्रव्य सत्ताथी अपृथक् ज छे एम मानवुं. माटे पूर्वे (मी गाथामां) सत्ताने जे सत्पणुं, असत्पणुं, त्रिलक्षणपणुं, अत्रिलक्षणपणुं, एकपणुं, अनेकपणुं, सर्वपदार्थस्थितपणुं, एकपदार्थस्थितपणुं, विश्वरूपपणुं, एकरूपपणुं, अनंतपर्यायमयपणुं अने एकपर्यायमयपणुं कहेवामां आव्युं ते बधुं सत्ताथी अनर्थांतरभूत (अभिन्नपदार्थभूत, अनन्यपदार्थभूत) द्रव्यने ज देखवुं (अर्थात् सत्पणुं, असत्पणुं, त्रिलक्षणपणुं, अत्रिलक्षणपणुं वगेरे बधा सत्ताना विशेषो द्रव्यना ज छे एम मानवुं). तेथी तेमनामां (ते सत्ताना विशेषोमां) कोई सत्ताविशेष बाकी रहेतो नथी के जे सत्ताने वस्तुतः (परमार्थे) द्रव्यथी पृथक् स्थापे. ९.

छे सत्त्व लक्षण जेहनुं, उत्पादव्ययध्रुवयुक्त जे,
गुणपर्ययाश्रय जेह, तेने द्रव्य सर्वज्ञो कहे. १०.

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१. श्री जयसेनाचार्यदेवनी टीकामां पण अहींनी माफक ज ‘द्रवति गच्छति’नो एक अर्थ तो ‘द्रवे छे अर्थात् पामे छे’ एम करवामां आव्यो छे; ते उपरांत ‘द्रवति एटले स्वभाव- पर्यायोने द्रवे छे अने गच्छति एटले विभावपर्यायोने पामे छे’ एवो बीजो अर्थ पण त्यां करवामां आव्यो छे.

२. अहीं द्रव्यनी जे निरुक्ति करवामां आवी छे ते ‘द्रु’ धातुने अनुसरता (मळता) अर्थवाळी छे.

३. सत्ता लक्षण छे अने द्रव्य लक्ष्य छे.