Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

भिन्नानि विशेषादेशाद्भिन्नानि युगपद्भावीनि स्वभावभूतानि द्रव्यस्य लक्षणं भवन्तीति गुणपर्याया वा द्रव्यलक्षणम् अनेकान्तात्मकस्य वस्तुनोऽन्वयिनो विशेषा गुणा व्यतिरेकिणः पर्यायास्ते द्रव्ये यौगपद्येन क्रमेण च प्रवर्तमानाः कथञ्चिद्भिन्नाः कथञ्चिदभिन्नाः स्वभावभूताः द्रव्यलक्षणतामापद्यन्ते त्रयाणामप्यमीषां द्रव्यलक्षणा- नामेकस्मिन्नभिहितेऽन्यदुभयमर्थादेवापद्यते सच्चेदुत्पादव्ययध्रौव्यवच्च गुणपर्यायवच्च उत्पाद- व्ययध्रौव्यवच्चेत्सच्च गुणपर्यायवच्च गुणपर्यायवच्चेत्सच्चोत्पादव्ययतध्रौव्यवच्चेति सद्धि नित्या- नित्यस्वभावत्वाद्ध्रुवत्वमुत्पादव्ययात्मकतांच प्रथयति, ध्रुवत्वात्मकैर्गुणैरुत्पादव्ययात्मकैः पर्यायैश्च सहैकत्वञ्चाख्याति उत्पादव्ययध्रौव्याणि तु नित्यानित्यस्वरूपं परमार्थं


के जेओ सामान्य आदेशे अभिन्न छे (अर्थात् सामान्य कथने द्रव्यथी अभिन्न छे), विशेष आदेशे (द्रव्यथी) भिन्न छे, युगपद् वर्ते छे अने स्वभावभूत छे तेओद्रव्यनुं लक्षण छे.

अथवा, गुणपर्यायो द्रव्यनुं लक्षण छे. अनेकांतात्मक वस्तुना +अन्वयी विशेषो ते गुणो छे अने व्यतिरेकी विशेषो ते पर्यायो छे. ते गुणपर्यायो (गुणो अने पर्यायो) के जेओ द्रव्यमां एकीसाथे अने क्रमे प्रवर्ते छे, (द्रव्यथी) कथंचित् भिन्न ने कथंचित अभिन्न छे तथा स्वभावभूत छे तेओद्रव्यनुं लक्षण छे.

द्रव्यनां आ त्रणे लक्षणोमांथी (सत्, उत्पादव्ययध्रौव्य अने गुणपर्यायो ए त्रण लक्षणोमांथी) एक कहेतां बाकीनां बंने (वगरकह्ये) अर्थथी ज आवी जाय छे. जो द्रव्य सत् होय, तो ते (१) उत्पादव्ययध्रौव्यवाळुं अने (२) गुणपर्यायवाळुं होय; जो उत्पादव्ययध्रौव्यवाळुं होय, तो ते (१) सत् अने (२) गुणपर्यायवाळुं होय; जो गुणपर्यायवाळुं होय, तो ते (१) सत् अने (२) उत्पादव्ययध्रौव्यवाळुं होय. ते आ प्रमाणेसत् नित्यानित्यस्वभाववाळुं होवाथी (१) ध्रौव्यने अने उत्पाद- व्ययात्मकताने जाहेर करे छे तथा (२) ध्रौव्यात्मक गुणो अने उत्पादव्ययात्मक पर्यायो साथे एकत्व दर्शावे छे. उत्पादव्ययध्रौव्य (१) नित्यानित्यस्वरूप पारमार्थिक सत्ने

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+अन्वय ने व्यतिरेकना अर्थ माटे १३मा पाने पदटिप्पण जुओ.

१. पारमार्थिक=वास्तविक; यथार्थ; खरुं. (वास्तविक सत् नित्यानित्यस्वरूप होय छे. उत्पादव्यय अनित्यताने अने ध्रौव्य नित्यताने जणावे छे तेथी उत्पादव्ययध्रौव्य नित्यानित्यस्वरूप वास्तविक
सत
्ने जणावे छे. आ रीते ‘द्रव्य उत्पादव्ययध्रौव्यवाळुं छे’ एम कहेतां ‘ते सत् छे’ एम पण वगरकह्ये ज आवी जाय छे).