Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 12.

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

द्रव्यस्य हि सहक्रमप्रवृत्तगुणपर्यायसद्भावरूपस्य त्रिकालावस्थायिनोऽनादि- निधनस्य न समुच्छेदसमुदयौ युक्तौ अथ तस्यैव पर्यायाणां सहप्रवृत्तिभाजां केषांचित् ध्रौव्यसंभवेऽप्यपरेषां क्रमप्रवृत्तिभाजां विनाशसंभवसंभावनमुपपन्नम् ततो द्रव्यार्थार्पणायामनुत्पादमनुच्छेदं सत्स्वभावमेव द्रव्यं, तदेव पर्यायार्थार्पणायां सोत्पादं सोच्छेदं चावबोद्धव्यम् सर्वमिदमनवद्यञ्च द्रव्यपर्यायाणामभेदात।।११।।

पज्जयविजुदं दव्वं दव्वविजुत्ता य पज्जया णत्थि
दोण्हं अणण्णभूदं भावं समणा परूवेंति ।।१२।।
पर्ययवियुतं द्रव्यं द्रव्यवियुक्ताश्च पर्याया न सन्ति
द्वयोरनन्यभूतं भावं श्रमणाः प्ररूपयन्ति ।।१२।।

अत्र द्रव्यपर्यायाणामभेदो निर्दिष्टः अपेक्षाथी द्रव्यना लक्षणना बे विभाग पाडवामां आव्या छे).

सहवर्ती गुणो अने क्रमवर्ती पर्यायोना सद्भावरूप, त्रिकाळ-अवस्थायी (त्रणे काळे टकनारा), अनादि-अनंत द्रव्यना विनाश ने उत्पाद उचित नथी. परंतु तेना ज पर्यायोना सहवर्ती केटलाक(पर्यायो)नुं ध्रौव्य होवा छतां पण बीजा क्रमवर्ती(पर्यायो)नाविनाश ने उत्पाद थवा घटे छे. माटे द्रव्य द्रव्यार्थिक आदेशथी (-कथनथी) उत्पाद विनानुं, विनाश विनानुं, सत्स्वभाववाळुं ज जाणवुं अने ते ज (द्रव्य) पर्यायार्थिक आदेशथी उत्पादवाळुं अने विनाशवाळुं जाणवुं.

आ बधुं निरवद्य (निर्दोष, निर्बाध, अविरुद्ध) छे, कारण के द्रव्य अने पर्यायोनो अभेद (-अभिन्नपणुं) छे. ११.

पर्यायविरहित द्रव्य नहि, नहि द्रव्यहीन पर्याय छे,
पर्याय तेम ज द्रव्य केरी अनन्यता श्रमणो कहे. १२.

अन्वयार्थ[पर्ययवियुतं] पर्यायो रहित [द्रव्यं] द्रव्य [] अने [द्रव्यवियुक्ताः] द्रव्य रहित [पर्यायाः] पर्यायो [न सन्ति] होतां नथी; [द्वयोः] बन्नेनो [अनन्यभूतं भावं] अनन्यभाव (-अनन्यपणुं) [श्रमणाः] श्रमणो [प्ररूपयन्ति] प्ररूपे छे.

टीकाअहीं द्रव्य अने पर्यायोनो अभेद दर्शाव्यो छे.

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