भावस्य सतो हि द्रव्यस्य न द्रव्यत्वेन विनाशः, अभावस्यासतोऽन्यद्रव्यस्य न द्रव्यत्वेनोत्पादः । किन्तु भावाः सन्ति द्रव्याणि सदुच्छेदमसदुत्पादं चान्तरेणैव गुणपर्यायेषु विनाशमुत्पादं चारभन्ते । यथा हि घृतोत्पत्तौ गोरसस्य सतो न विनाशः न चापि गोरसव्यतिरिक्त स्यार्थान्तरस्यासतः उत्पादः किन्तु गोरसस्यैव सदुच्छेदमसदुत्पादं चानुपलभ- मानस्य स्पर्शरसगन्धवर्णादिषु परिणामिषु गुणेषु पूर्वावस्थया विनश्यत्सूत्तरावस्थया प्रादुर्भवत्सु नश्यति च नवनीतपर्यायो घृतपर्याय उत्पद्यते, तथा सर्वभावानामपीति ।।१५।। भावा जीवादीया जीवगुणा चेदणा य उवओगो ।
सुरणरणारयतिरिया जीवस्स य पज्जया बहुगा ।।१६।। सत्नो विनाश होवानुं निषेध्युं छे (अर्थात् उत्पाद थतां कांई असत्नी उत्पत्ति थती नथी अने व्यय थतां कांई सत्नो विनाश थतो नथी एम आ गाथामां कह्युं छे).
भावनो — सत् द्रव्यनो — द्रव्यपणे विनाश नथी, अभावनो — असत् अन्य- द्रव्यनो — द्रव्यपणे उत्पाद नथी; परंतु भावो — सत् द्रव्यो, सत्ना विनाश अने असत्ना उत्पाद विना ज, गुणपर्यायोमां विनाश अने उत्पाद करे छे. जेवी रीते घीनी उत्पत्तिने विषे गोरसनो — सत्नो — विनाश नथी तेम ज गोरसथी भिन्न पदार्थांतरनो — असत्नो — उत्पाद नथी, परंतु गोरसने ज, सत्नो विनाश अने असत्नो उत्पाद कर्या विना ज, पूर्व अवस्थाथी विनाश पामता अने उत्तर अवस्थाथी उत्पन्न थता स्पर्श-रस-गंध- वर्णादिक परिणामी गुणोमां माखणपर्याय विनाश पामे छे अने घीपर्याय उत्पन्न थाय छे; तेवी रीते सर्व भावोनुं पण तेम ज छे [अर्थात् बधां द्रव्योने नवीन पर्यायनी उत्पत्तिने विषे सत्नो विनाश नथी तेम ज असत्नो उत्पाद नथी, परंतु सत्नो विनाश अने असत्नो उत्पाद कर्या विना ज, पहेलांनी (जूनी) अवस्थाथी विनाश पामता अने पछीनी (नवीन) अवस्थाथी उत्पन्न थता *परिणामी गुणोमां पहेलांनो पर्याय विनाश पामे छे अने पछीनो पर्याय उत्पन्न थाय छे]. १५.
*परिणामी=परिणमनारा; परिणामवाळा. (पर्यायार्थिक नये गुणो परिणामी छे अर्थात् परिणमे छे.)