Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 16.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
३३

भावस्य सतो हि द्रव्यस्य न द्रव्यत्वेन विनाशः, अभावस्यासतोऽन्यद्रव्यस्य न द्रव्यत्वेनोत्पादः किन्तु भावाः सन्ति द्रव्याणि सदुच्छेदमसदुत्पादं चान्तरेणैव गुणपर्यायेषु विनाशमुत्पादं चारभन्ते यथा हि घृतोत्पत्तौ गोरसस्य सतो न विनाशः न चापि गोरसव्यतिरिक्त स्यार्थान्तरस्यासतः उत्पादः किन्तु गोरसस्यैव सदुच्छेदमसदुत्पादं चानुपलभ- मानस्य स्पर्शरसगन्धवर्णादिषु परिणामिषु गुणेषु पूर्वावस्थया विनश्यत्सूत्तरावस्थया प्रादुर्भवत्सु नश्यति च नवनीतपर्यायो घृतपर्याय उत्पद्यते, तथा सर्वभावानामपीति ।।१५।। भावा जीवादीया जीवगुणा चेदणा य उवओगो

सुरणरणारयतिरिया जीवस्स य पज्जया बहुगा ।।१६।। सत्नो विनाश होवानुं निषेध्युं छे (अर्थात् उत्पाद थतां कांई असत्नी उत्पत्ति थती नथी अने व्यय थतां कांई सत्नो विनाश थतो नथी एम आ गाथामां कह्युं छे).

भावनोसत् द्रव्यनोद्रव्यपणे विनाश नथी, अभावनोअसत् अन्य- द्रव्यनोद्रव्यपणे उत्पाद नथी; परंतु भावोसत् द्रव्यो, सत्ना विनाश अने असत्ना उत्पाद विना ज, गुणपर्यायोमां विनाश अने उत्पाद करे छे. जेवी रीते घीनी उत्पत्तिने विषे गोरसनोसत्नोविनाश नथी तेम ज गोरसथी भिन्न पदार्थांतरनोअसत्नो उत्पाद नथी, परंतु गोरसने ज, सत्नो विनाश अने असत्नो उत्पाद कर्या विना ज, पूर्व अवस्थाथी विनाश पामता अने उत्तर अवस्थाथी उत्पन्न थता स्पर्श-रस-गंध- वर्णादिक परिणामी गुणोमां माखणपर्याय विनाश पामे छे अने घीपर्याय उत्पन्न थाय छे; तेवी रीते सर्व भावोनुं पण तेम ज छे [अर्थात् बधां द्रव्योने नवीन पर्यायनी उत्पत्तिने विषे सत्नो विनाश नथी तेम ज असत्नो उत्पाद नथी, परंतु सत्नो विनाश अने असत्नो उत्पाद कर्या विना ज, पहेलांनी (जूनी) अवस्थाथी विनाश पामता अने पछीनी (नवीन) अवस्थाथी उत्पन्न थता *परिणामी गुणोमां पहेलांनो पर्याय विनाश पामे छे अने पछीनो पर्याय उत्पन्न थाय छे]. १५.

जीवादि सौ छे ‘भाव’, जीवगुण चेतना उपयोग छे;
जीवपर्ययो तिर्यंच-नारक-देव-मनुज अनेक छे. १६.
पं. ५

*परिणामी=परिणमनारा; परिणामवाळा. (पर्यायार्थिक नये गुणो परिणामी छे अर्थात् परिणमे छे.)