Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
भावा जीवाद्या जीवगुणाश्चेतना चोपयोगः
सुरनरनारकतिर्यञ्चो जीवस्य च पर्यायाः बहवः ।।१६।।

अत्र भावगुणपर्यायाः प्रज्ञापिताः

भावा हि जीवादयः षट् पदार्थाः तेषां गुणाः पर्यायाश्च प्रसिद्धाः तथापि जीवस्य वक्ष्यमाणोदाहरणप्रसिद्धयर्थमभिधीयन्ते गुणा हि जीवस्य ज्ञानानुभूतिलक्षणा शुद्धचेतना, कार्यानुभूतिलक्षणा कर्मफलानुभूतिलक्षणा चाशुद्धचेतना, चैतन्यानुविधायिपरिणामलक्षणः सविकल्पनिर्विकल्परूपः शुद्धाशुद्धतया सकलविकलतां दधानो द्वेधोपयोगश्च पर्याया-

अन्वयार्थ[जीवाद्याः] जीवादि (द्रव्यो) ते [भावाः] ‘भावो’ छे. [जीवगुणाः] जीवना गुणो [चेतना च उपयोगः] चेतना तथा उपयोग छे [] अने [जीवस्य पर्यायाः] जीवना पर्यायो [सुरनरनारकतिर्यञ्चः] देव-मनुष्य-नारक-तिर्यंचरूप [बहवः] घणा छे.

टीकाअहीं भावो (द्रव्यो), गुणो अने पर्यायो जणाव्या छे.

जीवादि छ पदार्थो ते ‘भावो’ छे. तेमना गुणो अने पर्यायो प्रसिद्ध छे, तोपण आगळ (हवेनी गाथामां) जे उदाहरण कहेवानुं छे तेनी प्रसिद्धि अर्थे जीवना गुणो अने पर्यायो कहेवामां आवे छे

जीवना गुणो ज्ञानानुभूतिस्वरूप शुद्धचेतना तथा कार्यानुभूतिस्वरूप ने कर्म- फळानुभूतिस्वरूप अशुद्धचेतना छे अने चैतन्यानुविधायी-परिणामस्वरूप, सविकल्प- निर्विकल्परूप, शुद्धता-अशुद्धताने लीधे सकळता-विकळता धरतो, बे प्रकारनो उपयोग छे

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१. हवेनी गाथामां जीवनी वात उदाहरण तरीके लेवानी छे; माटे ते उदाहरणने प्रसिद्ध (जाणीतुं) करवा माटे अहीं जीवना गुणो अने पर्यायो कहेवामां आव्या छे.

२. शुद्धचेतना ज्ञाननी अनुभूतिस्वरूप छे अने अशुद्धचेतना कर्मनी तेम ज कर्मफळनी अनुभूति- स्वरूप छे.

३. चैतन्य-अनुविधायी परिणाम अर्थात् चैतन्यने अनुसरतो परिणाम ते उपयोग छे. सविकल्प उपयोगने ज्ञान अने निर्विकल्प उपयोगने दर्शन कहेवामां आवे छे. ज्ञानोपयोगना भेदोमांथी मात्र केवळज्ञान
ज शुद्ध होवाथी सकळ (
अखंड, परिपूर्ण) छे अने बीजा बधा अशुद्ध होवाथी विकळ (खंडित, अपूर्ण) छे; दर्शनोपयोगना भेदोमांथी मात्र केवळदर्शन ज शुद्ध होवाथी सकळ छे अने बीजा बधा अशुद्ध होवाथी विकळ छे.