Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

यदि हि जीवो य एव म्रियते स एव जायते, य एव जायते स एव म्रियते, तदैवं सतो विनाशोऽसत उत्पादश्च नास्तीति व्यवतिष्ठते यत्तु देवो जायते मनुष्यो म्रियते इति व्यपदिश्यते तदवधृतकालदेवमनुष्यत्वपर्यायनिर्वर्तकस्य देवमनुष्यगतिनाम्न- स्तन्मात्रत्वादविरुद्धम् यथा हि महतो वेणुदण्डस्यैकस्य क्रमवृत्तीन्यनेकानि पर्वाण्यात्मी- यात्मीयप्रमाणावच्छिन्नत्वात् पर्वान्तरमगच्छन्ति स्वस्थानेषु भावभाञ्जि परस्थानेष्वभावभाञ्जि भवन्ति, वेणुदण्डस्तु सर्वेष्वपि पर्वस्थानेषु भावभागपि पर्वान्तरसम्बन्धेन पर्वान्तर- सम्बन्धाभावादभावभाग्भवति; तथा निरवधित्रिकालावस्थायिनो जीवद्रव्यस्यैकस्य क्रमवृत्तयो- ऽनेके मनुष्यत्वादिपर्याया आत्मीयात्मीयप्रमाणावच्छिन्नत्वात् पर्यायान्तरमगच्छन्तः स्वस्थानेषु भावभाजः परस्थानेष्वभावभाजो भवन्ति, जीवद्रव्यं तु सर्वपर्यायस्थानेषु भावभागपि पर्यायान्तरसम्बन्धेन पर्यायान्तरसम्बन्धाभावादभावभाग्भवति ।।१९।।


छे (अर्थात् ध्रुवतानी अपेक्षाए सत्नो विनाश के असत्नो उत्पाद थतो नथी एम आ गाथामां कह्युं छे).

जो खरेखर जे जीव मरे छे ते ज जन्मे छे, जे जीव जन्मे छे ते ज मरे छे, तो ए रीते सत्नो विनाश अने असत्नो उत्पाद नथी एम नक्की थाय छे. अने देव जन्मे छे ने मनुष्य मरे छे’ एम जे कहेवामां आवे छे ते (पण) अविरुद्ध छे कारण के मर्यादित काळना देवत्वपर्याय अने मनुष्यत्वपर्यायने रचनारां देवगतिनामकर्म अने मनुष्यगतिनामकर्म मात्र तेटला काळ पूरतां ज होय छे. जेवी रीते मोटा एक वांसनां क्रमवर्ती अनेक पर्वो पोतपोताना मापमां मर्यादित होवाथी अन्य पर्वमां नहि जतां थकां पोतपोतानां स्थानोमां भाववाळां (विद्यमान) छे अने पर स्थानोमां अभाववाळां (अविद्यमान) छे तथा वांस तो बधांय पर्वस्थानोमां भाववाळो होवा छतां अन्य पर्वना संबंध वडे अन्य पर्वना संबंधनो अभाव होवाथी अभाववाळो (पण) छे; तेवी रीते निरवधि त्रणे काळे टकनारा एक जीवद्रव्यना क्रमवर्ती अनेक मनुष्यत्वादिपर्यायो पोतपोताना मापमां मर्यादित होवाथी अन्य पर्यायमां नहि जता थका पोतपोतानां स्थानोमां भाववाळा छे अने पर स्थानोमां अभाववाळा छे तथा जीवद्रव्य तो सर्वपर्यायस्थानोमां भाववाळुं होवा छतां अन्य पर्यायना संबंध वडे अन्य पर्यायना संबंधनो अभाव होवाथी अभाववाळुं (पण) छे.

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१. पर्व=एक गांठथी बीजी गांठ सुधीनो भाग; कातळी.