अत्र सामान्येनोक्त लक्षणानां षण्णां द्रव्याणां मध्यात् पंचानामस्तिकायत्वं व्यवस्थापितम् ।
अकृतत्वात् अस्तित्वमयत्वात् विचित्रात्मपरिणतिरूपस्य लोकस्य कारणत्वाच्चाभ्यु-
ते आ प्रसाद खरेखर अनेकांतवादनो छे के आवो विरोध पण (खरेखर) विरोध नथी. २१.
आ रीते षड्द्रव्यनुं सामान्य प्ररूपण समाप्त थयुं.
अन्वयार्थः — [जीवाः] जीवो, [पुद्गलकायाः] पुद्गलकायो, [आकाशम्] आकाश अने [शेषौ अस्तिकायौ] बाकीना बे अस्तिकायो [अमयाः] अकृत छे, [अस्तित्वमयाः] अस्तित्वमय छे अने [हि] खरेखर [लोकस्य कारणभूताः] लोकना कारणभूत छे.
टीकाः — अहीं (आ गाथामां), सामान्यपणे जेमनुं स्वरूप (पूर्वे) कहेवामां आव्युं छे एवां छ द्रव्योमांथी पांचने अस्तिकायपणुं स्थापित करवामां आव्युं छे.
अकृत होवाथी, अस्तित्वमय होवाथी अने अनेक प्रकारनी *पोतानी परिणतिरूप लोकनां कारण होवाथी जेओ स्वीकारवामां ( – संमत करवामां) आव्यां
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१. लोक छ द्रव्योना अनेकविध परिणामरूप ( – उत्पादव्ययध्रौव्यरूप) छे; तेथी छ द्रव्यो खरेखर लोकनां कारण छे.