इति समयव्याख्यायामन्तर्नीतषड्द्रव्यपञ्चास्तिकायसामान्यव्याख्यानरूपः पीठबन्धः समाप्तः ।।
ए रीते जोके व्यवहारकाळनुं माप पुद्गल द्वारा थतुं होवाथी तेने उपचारथी पुद्गलाश्रित कहेवामां आवे छे तोपण निश्चयथी ते केवळ काळद्रव्यना ज पर्यायरूप छे, पुद्गलथी सर्वथा भिन्न छे — एम समजवुं. जेम दस शेर पाणीना माटीमय घडानुं माप पाणी द्वारा थतुं होवा छतां घडो माटीना ज पर्यायरूप छे, पाणीना पर्यायरूप नथी, तेम समय-निमेषादि व्यवहारकाळनुं माप पुद्गल द्वारा थतुं होवा छतां व्यवहारकाळ काळद्रव्यना ज पर्यायरूप छे, पुद्गलना पर्यायरूप नथी.
काळसंबंधी गाथासूत्रोना कथननो संक्षेप आ प्रमाणे छेः — जीवपुद्गलोना परिणाममां (समयविशिष्ट वृत्तिमां) व्यवहारे समयनी अपेक्षा आवे छे; तेथी समयने उत्पन्न करनारो कोई पदार्थ अवश्य होवो जोईए. आ पदार्थ ते काळद्रव्य छे. काळद्रव्य परिणमवाथी व्यवहारकाळ थाय छे अने ते व्यवहारकाळ पुद्गल द्वारा मपातो होवाथी तेने उपचारथी पराश्रित कहेवामां आवे छे. पंचास्तिकायनी माफक निश्चयव्यवहाररूप काळ पण लोकरूपे परिणत छे एम सर्वज्ञोए जोयुं छे अने अति तीक्ष्ण द्रष्टि वडे स्पष्ट सम्यक् अनुमान पण थई शके छे.
काळसंबंधी कथननो तात्पर्यार्थ नीचे प्रमाणे ग्रहवायोग्य छेः — अतीत अनंत काळमां जीवने एक चिदानंदरूप काळ ज (स्वकाळ ज) जेनो स्वभाव छे एवा जीवास्तिकायनी उपलब्धि थई नथी; ते जीवास्तिकायनुं ज सम्यक् श्रद्धान, तेनुं ज रागादिथी भिन्नरूपे भेदज्ञान अने तेमां ज रागादिविभावरूप समस्त संकल्प- विकल्पजाळना त्याग वडे स्थिर परिणति कर्तव्य छे. २६.
आ रीते (श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेवप्रणीत श्री पंचास्तिकायसंग्रह शास्त्रनी श्री अमृतचंद्राचार्यदेवविरचित) समयव्याख्या नामनी टीकामां षड्द्रव्य-पंचास्तिकायना सामान्य व्याख्यानरूप पीठिका समाप्त थई.
हवे तेमनुं ज ( – षड्द्रव्य अने पंचास्तिकायनुं ज) विशेष व्याख्यान करवामां आवे छे. तेमां प्रथम, जीवद्रव्यास्तिकायनुं व्याख्यान छे.