Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
५३

व्यवहारेण द्रव्यकर्मणामास्रवणबन्धनसंवरणनिर्जरणमोक्षणेषु स्वयमीशत्वात् प्रभुः निश्चयेन पौद्गलिककर्मनिमित्तात्मपरिणामानां, व्यवहारेणात्मपरिणामनिमित्तपौद्गलिककर्मणां कर्तृत्वात्कर्ता निश्चयेन शुभाशुभकर्मनिमित्तसुखदुःखपरिणामानां, व्यवहारेण शुभाशुभ- कर्मसंपादितेष्टानिष्टविषयाणां भोक्तृ त्वाद्भोक्ता निश्चयेन लोकमात्रोऽपि विशिष्टावगाह- परिणामशक्ति युक्त त्वान्नामकर्मनिर्वृत्तमणु महच्च शरीरमधितिष्ठन् व्यवहारेण देहमात्रः व्यवहारेण कर्मभिः सहैकत्वपरिणामान्मूर्तोऽपि निश्चयेन नीरूपस्वभावत्वान्न हि मूर्तः निश्चयेन पुद्गलपरिणामानुरूपचैतन्यपरिणामात्मभिः, व्यवहारेण चैतन्यपरिणामानुरूपपुद्गल- परिणामात्मभिः कर्मभिः संयुक्त त्वात्कर्मसंयुक्त इति ।।२७।।


चैतन्यपरिणामस्वरूप उपयोग वडे लक्षित होवाथी ‘उपयोगलक्षित’ छे; निश्चये भावकर्मोनां आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा अने मोक्ष करवामां स्वयं ईश (समर्थ) होवाथी ‘प्रभु’ छे, व्यवहारे (असद्भूत व्यवहारनये) द्रव्यकर्मोनां आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा अने मोक्ष करवामां स्वयं ईश होवाथी ‘प्रभु’ छे; निश्चये पौद्गलिक कर्मो जेमनुं निमित्त छे एवा आत्मपरिणामोनुं कर्तृत्व होवाथी ‘कर्ता’ छे, व्यवहारे (असद्भूत व्यवहारनये) आत्मपरिणामो जेमनुं निमित्त छे एवां पौद्गलिक कर्मोनुं कर्तृत्व होवाथी ‘कर्ता’ छे; निश्चये शुभाशुभ कर्मो जेमनुं निमित्त छे एवा सुखदुःख- परिणामोनुं भोक्तृत्व होवाथी ‘भोक्ता’ छे, व्यवहारे (असद्भूत व्यवहारनये) शुभाशुभ कर्मोथी संपादित (प्राप्त) इष्टानिष्ट विषयोनुं भोक्तृत्व होवाथी ‘भोक्ता’ छे; निश्चये लोकप्रमाण होवा छतां, विशिष्ट अवगाहपरिणामनी शक्तिवाळो होवाथी नामकर्मथी रचाता नानामोटा शरीरमां रहेतो थको व्यवहारे (सद्भूत व्यवहारनये) देहप्रमाण’ छे; व्यवहारे (असद्भूत व्यवहारनये) कर्मो साथे एकत्वपरिणामने लीधे मूर्त होवा छतां, निश्चये अरूपी-स्वभाववाळो होवाने लीधे ‘अमूर्त’ छे; *निश्चये पुद्गलपरिणामने अनुरूप चैतन्यपरिणामात्मक कर्मो साथे संयुक्त होवाथी ‘कर्मसंयुक्त छे; व्यवहारे (असद्भूत व्यवहारनये) चैतन्यपरिणामने अनुरूप पुद्गलपरिणामात्मक कर्मो साथे संयुक्त होवाथी ‘कर्मसंयुक्त’ छे.

भावार्थपहेली २६ गाथाओमां षड्द्रव्य अने पंचास्तिकायनुं सामान्य

*संसारी आत्मा निश्चये निमित्तभूत पुद्गलकर्मोने अनुरूप एवा नैमित्तिक आत्मपरिणामो साथे
(अर्थात
् भावकर्मो साथे) संयुक्त होवाथी कर्मसंयुक्त छे अने व्यवहारे निमित्तभूत आत्मपरिणामोने अनुरूप एवां नैमित्तिक पुद्गलकर्मो साथे (अर्थात् द्रव्यकर्मो साथे) संयुक्त होवाथी कर्मसंयुक्त छे.