Panchastikay Sangrah (Hindi). Gatha: 75.

< Previous Page   Next Page >


Page 119 of 264
PDF/HTML Page 148 of 293

 

background image
कहानजैनशास्त्रमाला] षड्द्रव्य–पंचास्तिकायवर्णन
[
११९
पुद्गलद्रव्यविकल्पादेशोऽयम्।
पुद्गलद्रव्याणि हि कदाचित्स्कंधपर्यायेण, कदाचित्स्कंधदेशपर्यायेण,
कदाचित्स्कंधप्रदेशपर्यायेण, कदाचित्परमाणुत्वेनात्र तिष्टन्ति। नान्या गतिरस्ति। इति तेषां
चतुर्विकल्पत्वमिति।। ७४।।
खंधं सयलसमत्थं तस्स दु अद्धं भणंति देसो त्ति।
अद्धद्धं च पदेसो परमाणू चेव अविभागी।। ७५।।
स्कंधः सकलसमस्तस्तस्य त्वर्धं भणन्ति देश इति।
अर्धार्ध च प्रदेशः परमाणुश्चैवाविभागी।। ७५।।
-----------------------------------------------------------------------------
गाथा ७४
अन्वयार्थः– [ते पुद्गलकायाः] पुद्गलकायके [चतुर्विकल्पाः] चार भेद [ज्ञातव्याः] जानना;
[स्कंधाः च] स्कंध, [स्कंधदेशाः] स्कंधदेश [स्कंधप्रदेशाः] स्कंधप्रदेश [च] और [परमाणवः
भवन्ति इति] परमाणुु।
टीकाः– यह, पुद्गलद्रव्यके भेदोंका कथन है।
पुद्गलद्रव्य कदाचित् स्कंधपर्यायसे, कदाचित् स्कंधदेशरूप पर्यायसे, कदाचित् स्कंधप्रदेशरूप
पर्यायसे और कदाचित् परमाणुरूपसे यहाँ [लोकमें] होते हैं; अन्य कोई गति नहीं है। इस प्रकार
उनके चार भेद हैं।। ७४।।
गाथा ७५
अन्वयार्थः– [सकलसमस्तः] सकल–समस्त [पुद्गलपिण्डात्मक सम्पूर्ण वस्तु] वह [स्कंधः]
स्कंध है। [तस्य अर्धं तु] उसके अर्धको [देशः इति भणन्ति] देश कहते हैं, [अर्धाधं च] अर्धका
अर्ध वह [प्रदेशः] प्रदेश है [च] और [अविभागी] अविभागी वह [परमाणुः एव] सचमुच परमाणु
है।
------------------------------------------------------------------------
पूरण–सकळ ते‘स्कंध’ छे ने अर्ध तेनुं ‘देश’ छे,
अर्धार्ध तेनुं ‘प्रदेश’ ने अविभाग ते ‘परमाणु’ छे। ७५।