स्कंधस्यांत्यो भेदः परमाणुरेकः। पुनरपि द्वयोः परमाण्वोः संधातादेको द्वयणुकस्कंधपर्यायः। एवं
संधातवशादनंताः स्कंधपर्यायाः। एवं भेदसंधाताभ्यामप्यनंता भवंतीति।। ७५।।
अनन्तानन्त परमाणुओंसे निर्मित होने पर भी जो एक हो वह स्कंध नामकी पर्याय है; उसकी
कारण [पृथक होनके कारण] द्वि–अणुक स्कंधपर्यंत अनन्त स्कंधप्रदेशरूप पर्यायें होती हैं।
निर्विभाग–एक–प्रदेशवाला, स्कंधका अन्तिम अंश वह एक परमाणु है। [इस प्रकार
स्कंधरूप पर्यायें होती है। [इस प्रकार संघातसे होनेवाले पुद्गलविकल्पका वर्णन हुआ। ]
७५।।
हैे। भेद द्वारा उसके जो पुद्गलविकल्प होते हैं वे निम्नोक्त द्रष्टान्तानुसार समझना। मानलो कि १६
परमाणुओंसे निर्मित एक पुद्गलपिण्ड है और वह टूटकर उसके टुकड़े़ होते है। वहाँ १६ परमाणुाोंके पूर्ण
पुद्गलपिण्डको ‘स्कंध’ माने तो ८ परमाणुओंवाला उसका अर्धभागरूप टुकड़ा वह ‘देश’ है, ४
परमाणुओंवाला उसका चतुर्थभागरूप टुकड़ा वह ‘प्रदेश’ है और अविभागी छोटे–से–छोटा टुकड़ा वह
‘परमाणु’ है। पुनश्च, जिस प्रकार १६ परमाणुवाले पूर्ण पिण्डको ‘स्कंध’ संज्ञा है, उसी प्रकार १५ से लेकर
९ परमाणुओं तकके किसी भी टुकड़े़़़को भी ‘स्कंध’ संज्ञा हैे; जिस प्रकार ८ परमाणुओंवाले उसके
अर्धभागरूप टुकड़े़़़को ‘देश’ संज्ञा हैे, उसी प्रकार ७ से लेकर ५ परमाणओुं तकके उसके किसी भी
टुकड़े़़़़को भी ‘देश’ संज्ञा है; जिस प्रकार ४ परमाणुवाले उसके चतुर्थभागरूप टुकड़े़़़़़को ‘प्रदेश’ संज्ञा है,
उसी प्रकार ३ से लेकर २ परमाणु तकके उसके किसी भी टुकड़े़़़़को भी ‘प्रदेश’ संज्ञा है। – इस द्रष्टान्तके
अनुसार, भेद द्वारा होनेवाले पुद्गलविकल्प समझना।