Panchastikay Sangrah (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 152 of 264
PDF/HTML Page 181 of 293

 

background image
१५२
] पंचास्तिकायसंग्रह
[भगवानश्रीकुन्दकुन्द
मूर्तोमूर्तलक्षणाख्यानमेतत्।
इह हि जीवैः स्पर्शनरसनध्राणचक्षुर्भिरिन्द्रियैस्तद्विषयभूताः स्पर्शरसगंधवर्णस्वभावा अर्था
गृह्यंते।ः। श्रोत्रेन्द्रियेण तु त एव तद्विषयहेतुभूतशब्दाकारपरिणता गृह्यंते। ते कदाचित्स्थूल–
स्कंधत्वमापन्नाः कदाचित्सूक्ष्मत्वमापन्नाः कदाचित्परमाणुत्वमापन्नाः इन्द्रियग्रहणयोग्यतासद्भावाद्
गृह्यमाणा अगृह्यमाणा वा मूर्ता इत्युच्यंते। शेषमितरत् समस्तमप्यर्थजातं स्पर्शरस–
गंधवर्णाभावस्वभावमिन्द्रियग्रहणयोग्यताया अभावादमूर्तमित्युच्यते। चित्तग्रहणयोग्यतासद्भाव–
भाग्भवति तदुभयमपि, चितं, ह्यनियतविषयमप्राप्यकारि मतिश्रुतज्ञानसाधनीभूतं मूर्तममूर्तं च
समाददातीति।। ९९।।
–इति चूलिका समाप्ता।
-----------------------------------------------------------------------------
टीकाः– यह, मूर्त और अमूर्तके लक्षणका कथन है।
इस लोकमें जीवों द्वारा स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, ध्राणेन्द्रिय और चक्षुरिन्द्रिय द्वारा उनके
[–उन इन्द्रियोंके] विषयभूत, स्पर्श–रस–गंध–वर्णस्वभाववाले पदार्थ [–स्पर्श, रस, गंध और वर्ण
जिनका स्वभाव है ऐसे पदार्थ] ग्रहण होते हैं [–ज्ञात होते हैं]; और श्रोत्रेन्द्रिय द्वारा वही पदार्थ
उसके [श्रोत्रैन्द्रियके]
विषयहेतुभूत शब्दाकार परिणमित होते हुए ग्रहण होते हैं। वे [वे पदार्थ],
कदाचित् स्थूलस्कन्धपनेको प्राप्त होते हुए, कदाचित् सूक्ष्मत्वको [सूक्ष्मस्कंधपनेको] प्राप्त होते हुए
और कदाचित् परमाणुपनेको प्राप्त होते हुए इन्द्रियों द्वारा ग्रहण होते हों या न होते हों, इन्द्रियों
द्वारा ग्रहण होनेकी योग्यताका [सदैव] सद्भाव होनेसे ‘मूर्त’ कहलाते हैं।
स्पर्श–रस–गंध–वर्णका अभाव जिसका स्वभाव है ऐसा शेष अन्य समस्त पदार्थसमूह इीनद्रयों
द्वारा ग्रहण होनेकी योग्यताके अभावके कारण ‘अमूर्त’ कहलाता है।
वे दोनों [–पूर्वोक्त दोनों प्रकारके पदार्थ] चित्त द्वारा ग्रहण होनेकी योग्यताके सद्भाववाले हैं;
चित्त– जो कि अनियत विषयवाला, अज्जाप्यकारी और मतिश्रुतज्ञानके साधनभूत [–मतिज्ञान
तथा श्रुतज्ञानमें निमित्तभूत] है वह–मूर्त तथा अमूर्तको ग्रहण करता है [–जानता है]।। ९९।।
इस प्रकार चूलिका समाप्त हुई।
--------------------------------------------------------------------------
४। उन स्पर्श–रस–गंध–वर्णसवभाववाले पदार्थोहको [अर्थात् पुद्गलोंको] श्रोत्रैन्द्रियके विषय होनेमें हेतुभूत
शब्दाकारपरिणाम है, इसलिये वे पदार्थ [पुद्गल] शब्दाकार परिणमित होते हुए श्रोत्रेन्द्रिय द्वारा ग्रहण होते
हैं।
५। अनियत=अनिश्चित। [जिस प्रकार पाँच इन्द्रियोमेंसे प्रतयेक इन्द्रियका विषय नियत है उस प्रकार मनका
विषय नियत नहीं है, अनियत हैे।]
६। अज्जाप्यकारी=ज्ञेय विषयोंका स्पर्श किये बिना कार्य करनेवाला यजाननेवाला। [मन और चक्षु अज्जाप्यकारी
हैं, चक्षुके अतिरिक्त चार इन्द्रियाँ प्राप्यकारी हैं।]