कहानजैनशास्त्रमाला] नवपदार्थपूर्वक–मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
जलचरस्थलचरखचरा बलिनः पंचेन्द्रिया जीवाः।। ११७।।
पञ्चेन्द्रियप्रकारसूचनेयम्। अथ स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्रेन्द्रियावरणक्षयोपशमात् नोइन्द्रियावरणोदये सति स्पर्श– रसगंधवर्णशब्दानां परिच्छेत्तारः पंचेन्द्रिया अमनस्काः। केचित्तु नोइन्द्रियावरणस्यापि क्षयोप–शमात् समनस्काश्च भवन्ति। तत्र देवमनुष्यनारकाः समनस्का एव, तिर्यंच उभयजातीया इति।।११७।।
तिरिया बहुप्पयारा णेरइया पुढविभेयगदा।। ११८।।
तिर्यंचः बहुप्रकाराः नारकाः पृथिवीभेदगताः।। ११८।।
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अन्वयार्थः– [वर्णरसस्पर्शगंधशब्दज्ञाः] वर्ण, रस, स्पर्श, गन्ध और शब्दको जाननेवाले ं[सुरनरनारकतिर्यंञ्चः] देव–मनुष्य–नारक–तिर्यंच–[जलचरस्थलचरखचराः] जो जलचर, स्थलचर, खेचर होते हैं वे –[बलिनः पंचेन्द्रियाः जीवाः] बलवान पंचेन्द्रिय जीव हैं।
स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय और श्रोत्रेन्द्रियके आवरणके क्षयोपशमके कारण, मनके आवरणका उदय होनेसे, स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण और शब्दको जाननेवाले जीव मनरहित पंचेन्द्रिय जीव हैं; कतिपय [पंचेन्द्रिय जीव] तो, उन्हें मनके आवरणका भी क्षयोपशम होनेसे, मनसहित [पंचेन्द्रिय जीव] होते हैं।
उनमें, देव, मनुष्य और नारकी मनसहित ही होते हैं; तिर्यंच दोनों जातिके [अर्थात् मनरहित तथा मनसहित] होते हैं।। ११७।।
अन्वयार्थः– [देवाः चतुर्णिकायाः] देवोंके चार निकाय हैं, [मनुजाः कर्मभोग– --------------------------------------------------------------------------