कहानजैनशास्त्रमाला] नवपदार्थपूर्वक–मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
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पुण्यपापस्वरूपाख्यानमेतत्।
जीवस्य कर्तुः निश्चयकर्मतामापन्नः शुभपरिणामो द्रव्यपुण्यस्य निमित्तमात्रत्वेन कारणी–
भूतत्वात्तदास्रवक्षणादूर्ध्वं भवति भावपुण्यम्। एवं जीवस्य कर्तुर्निश्चयकर्मतामापन्नोऽशुभपरिणामो
द्रव्यपापस्य निमित्तमात्रत्वेन कारणीभूतत्वात्तदास्रवक्षणादूर्ध्वं भावपापम्। पुद्गलस्य
कर्तुर्निश्चयकर्मतामापन्नो विशिष्टप्रकृतित्वपरिणामो जीवशुभपरिणामनिमित्तो द्रव्यपुण्यम्। पुद्गलस्य
कर्तुर्निश्चयकर्मतामापन्नो विशिष्टप्रकृतित्वपरिणामो जीवाशुभपरिणामनिमित्तो द्रव्यपापम्। एवं
व्यवहारनिश्चयाभ्यामात्मनो मूर्तममूर्तञ्च कर्म प्रज्ञापितमिति।। १३२।।
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टीकाः– यह, पुण्य–पापके स्वरूपका कथन है।
जीवरूप कर्ताके १निश्चयकर्मभूत शुभपरिणाम द्रव्यपुण्यको निमित्तमात्ररूपसे कारणभूत है इसलिये
‘द्रव्यपुण्यास्रव’के प्रसंगका अनुसरण करके [–अनुलक्ष करके] वे शुभपरिणाम ‘भावपुण्य’ हैं।
[सातावेदनीयादि द्रव्यपुण्यास्रवका जो प्रसंग बनता है उसमें जीवके शुभपरिणाम निमित्तकारण हैं
इसलिये ‘द्रव्यपुण्यास्रव’ प्रसंगके पीछे–पीछे उसके निमित्तभूत शुभपरिणामको भी ‘भावपुण्य’ ऐसा
नाम है।] इस प्रकार जीवरूप कर्ताके निश्चयकर्मभूत अशुभपरिणाम द्रव्यपापको निमित्तमात्ररूपसे
कारणभूत हैं इसलिये ‘द्रव्यपापास्रव’के प्रसंगका अनुसरण करके [–अनुलक्ष करके] वे
अशुभपरिणाम ‘भावपाप’ हैं।
पुद्गलरूप कर्ताके २निश्चयकर्मभूत विशिष्टप्रकृतिरूप परिणाम [–सातावेदनीयादि खास
प्रकृतिरूप परिणाम]–कि जिनमें जीवके शुभपरिणाम निमित्त हैं वे–द्रव्यपुण्य हैं। पुद्गलरूप कर्ताके
निश्चयकर्मभूत विशिष्टप्रकृतिरूप परिणाम [–असातावेदनीयादि खास प्रकृतिरूप परिणाम] – कि
जिनमें जीवके अशुभपरिणाम निमित्त हैं वे–द्रव्यपाप हैं।
इस प्रकार व्यवहार तथा निश्चय द्वारा आत्माको मूर्त तथा अमूर्त कर्म दर्शाया गया।
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१। जीव कर्ता है और शुभपरिणाम उसका [अशुद्धनिश्चयनयसे] निश्चयकर्म है।
२। पुद्गल कर्ता है और विशिष्टप्रकृतिरूप परिणाम उसका निश्चयकर्म है [अर्थात् निश्चयसे पुद्गल कर्ता हैे और
सातावेदनीयादि विशिष्ट प्रकृतिरूप परिणाम उसका कर्म है]।