Panchastikay Sangrah (Hindi). Gatha: 133.

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] पंचास्तिकायसंग्रह
[भगवानश्रीकुन्दकुन्द
जम्हा कम्मस्स फलं विसयं फासेहिं भुंजदे णियदं।
जीवेण सुहं दुक्खं तम्हा कम्माणि मुत्ताणि।। १३३।।्रबद्य
यस्मात्कर्मणः फलं विषयः स्पर्शैर्भुज्यते नियतम्।
जीवेन सुखं दुःखं तस्मात्कर्माणि मूर्तानि।। १३३।।
मूर्तकर्मसमर्थनमेतत्।
यतो हि कर्मणां फलभूतः सुखदुःखहेतुविषयो मूर्तो मूर्तैरिन्द्रियैर्जीवेन नियतं भुज्यते, ततः
कर्मणां मूर्तत्वमनुमीयते। तथा हि–मूर्तं कर्म, मूर्तसंबंधेनानुभूयमानमूर्तफलत्वादाखु–विषवदिति।।
१३३।।
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भावार्थः– निश्चयसे जीवके अमूर्त शुभाशुभपरिणामरूप भावपुण्यपाप जीवका कर्म है।
शुभाशुभपरिणाम द्रव्यपुण्यपापका निमित्तकारण होनके कारण मूर्त ऐसे वे पुद्गलपरिणामरूप [साता–
असातावेदनीयादि] द्रव्यपुण्यपाप व्यवहारसे जीवका कर्म कहे जाते हैं।। १३२।।
गाथा १३३
अन्वयार्थः– [यस्मात्] क्योंकि [कर्मणः फलं] कर्मका फल [विषयः] जो [मूर्त] विषय वे
[नियतम्] नियमसे [स्पर्शैः] [मूर्त ऐसी] स्पर्शनादि–इन्द्रियों द्वारा [जीवेन] जीवसे [सुखं दुःखं]
सुखरूपसे अथवा दुःखरूपसे [भुज्यते] भोगे जाते हैं, [तस्मात्] इसलिये [कर्माणि] कर्म [मूर्तानि]
मूर्त हैं।
टीकाः– यह, मूर्त कर्मका समर्थन है।
कर्मका फल जो सुख–दुःखके हेतुभूत मूर्त विषय वे नियमसे मूर्त इन्द्रियोंं द्वारा जीवसे भोगे
जाते हैं, इसलिये कर्मके मूर्तपनेका अनुमान हो सकता है। वह इस प्रकारः– जिस प्रकार मूषकविष
मूर्त है उसी प्रकार कर्म मूर्त है, क्योंकि [मूषकविषके फलकी भाँति] मूर्तके सम्बन्ध द्वारा अनुभवमें
आनेवाला ऐसा मूर्त उसका फल है। [चूहेके विषका फल
(–शरीरमें सूजन आना, बुखार आना
आदि) मूर्त हैे और मूर्त शरीरके सम्बन्ध द्वारा अनुभवमें आता है–भोगा जाता है, इसलिये अनुमान
हो
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छे कर्मनुं फळ विषय, तेने नियमथी अक्षो वडे
जीव भोगवे दुःखे–सुखे, तेथी करम ते मूर्त छे। १३३।