कहानजैनशास्त्रमाला] नवपदार्थपूर्वक–मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
जीवो मुत्तिविरहिदो गाहदि ते तेहिं उग्गहदि।। १३४।।
जीवो मूर्तिविरहितो गाहति तानि तैरवगाह्यते।। १३४।।
मूर्तकर्म स्पृशति, ततस्तन्मूर्तं तेन सह स्नेहगुणवशाद्बंधमनुभवति। एष मूर्तयोः कर्मणोर्बंध–प्रकारः। अथ निश्चयनयेनामूर्तो जीवोऽनादिमूर्तकर्मनिमित्तरागादिपरिणामस्निग्धः सन् विशिष्टतया मूर्तानि ----------------------------------------------------------------------------- सकता है कि चूहेका विषका मूर्त है; उसी प्रकार कर्मका फल (–विषय) मूर्त है और मूर्त इन्द्रियोंके सम्बन्ध द्वारा अनुभवमें आता है–भोगा जाता है, इसलिये अनुमान हो सकता है कि कर्म मूर्त है।] १३३।।
[बंधम् अनुभवति] बन्धको प्राप्त होता है; [मूर्तिविरहितः जीवः] मूर्तत्वरहित जीव [तानि गाहति] मूर्तकर्मोंको अवगाहता है और [तैः अवगाह्यते] मूर्तकर्म जीवको अवगाहते हैं [अर्थात् दोनों एकदूसरेमें अवगाह प्राप्त करते हैं]।
टीकाः– यह, मूर्तकर्मका मूर्तकर्मके साथ जो बन्धप्रकार तथा अमूर्त जीवका मूर्तकर्मके साथ जो बन्धप्रकार उसकी सूचना है।
यहाँ [इस लोकमें], संसारी जीवमें अनादि संततिसे [–प्रवाहसे] प्रवर्तता हुआ मूर्तकर्म विद्यमान है। वह, स्पर्शादिवाला होनेके कारण, आगामी मूर्तकर्मको स्पर्श करता है; इसलिये मूर्त ऐसा वह वह उसके साथ, स्निग्धत्वगुणके वश [–अपने स्निग्धरूक्षत्वपर्यायके कारण], बन्धको प्राप्त होता है। यह, मूर्तकर्मका मूर्तकर्मके साथ बन्धप्रकार है। --------------------------------------------------------------------------
आत्मा अमूरत ने करम अन्योन्य अवगाहन लहे। १३४।