कहानजैनशास्त्रमाला] नवपदार्थपूर्वक–मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
पुण्यास्रवस्वरूपाख्यानमेतत्। प्रशस्तरागोऽनुकम्पापरिणतिः चित्तस्याकलुषत्वञ्चेति त्रयः शुभा भावाः द्रव्यपुण्यास्रवस्य निमित्तमात्रत्वेन कारणभुतत्वात्तदास्रवक्षणादूर्ध्वं भावपुण्यास्रवः। तन्निमित्तः शुभकर्मपरिणामो योगद्वारेण प्रविशतां पुद्गलानां द्रव्यपुण्यास्रव इति।। १३५।।
अणुगमणं पि गुरूणं पसत्थरागो त्ति
अनुगमनमपि गुरूणां प्रशस्तराग इति ब्रुवन्ति।। १३६।।
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प्रशस्त राग, अनुकम्पापरिणति और चित्तकी अकलुषता–यह तीन शुभ भाव द्रव्यपुण्यास्रवको निमित्तमात्ररूपसे कारणभूत हैं इसलिये ‘द्रव्यपुण्यास्रव’ के प्रसंगका १अनुसरण करके [–अनुलक्ष करके] वे शुभ भाव भावपुण्यास्रव हैं और वे [शुभ भाव] जिसका निमित्त हैं ऐसे जो योगद्वारा प्रविष्ट होनेवाले पुद्गलोंके शुभकर्मपरिणाम [–शुभकर्मरूप परिणाम] वे द्रव्यपुण्यास्रव हैं।। १३५।।
चेष्टा] धर्ममें यथार्थतया चेष्टा [अनुगमनम् अपि गुरूणाम्] और गुरुओंका अनुगमन, [प्रशस्तरागः इति ब्रुवन्ति] वह ‘प्रशस्त राग’ कहलाता है। -------------------------------------------------------------------------- १। सातावेदनीयादि पुद्गलपरिणामरूप द्रव्यपुण्यास्रवका जो प्रसङ्ग बनता है उसमें जीवके प्रशस्त रागादि शुभ भाव
‘भावपुण्यास्रव’ ऐसा नाम है।
गुरुओ तणुं अनुगमन–ए परिणाम राग प्रशस्तना। १३६।