Panchastikay Sangrah (Hindi). Gatha: 139.

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कहानजैनशास्त्रमाला] नवपदार्थपूर्वक–मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन

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२०१

चरिया पमादबहुला कालुस्सं लोलदा य विसएसु।
परपरिदावपवादो पावस्स य आसवं
कुणदि।। १३९।।

चर्या प्रमादबहुला कालुष्यं लोलता च विषयेषु।
परपरितापापवादः पापस्य चास्रवं करोति।। १३९।।

पापास्रवस्वरूपाख्यानमेतत्। प्रमादबहुलचर्यापरिणतिः, कालुष्यपरिणतिः, विषयलौल्यपरिणतिः, परपरितापपरिणतिः, परापवादपरिणतिश्चेति पञ्चाशुभा भावा द्रव्यपापास्रवस्य निमित्तमात्रत्वेन कारणभूतत्वा– त्तदास्रवक्षणादूर्ध्वं भावपापास्रवः। तन्निमित्तोऽशुभकर्मपरिणामो योगद्वारेण प्रविशतां पुद्गलानां द्रव्यपापास्रव इति।। १३९।। -----------------------------------------------------------------------------

क्रोध, मान, माया और लोभके तीव्र उदयसे चित्तका क्षोभ सो कलुषता है। उन्हींके [– क्रोधादिके ही] मंद उदयसे चित्तकी प्रसन्नता सो अकलुषता है। वह अकलुषता, कदाचित् कषायका विशिष्ट [–खास प्रकारका] क्षयोपशम होने पर, अज्ञानीको होती है; कषायके उदयका अनुसरण करनेवाली परिणतिमेंसे उपयोगको असमग्ररूपसे विमुख किया हो तब [अर्थात् कषायके उदयका अनुसरण करनेवाले परिणमनमेंसे उपयोगको पूर्ण विमुख न किया हो तब], मध्यम भूमिकाओंमें [– मध्यम गुणस्थानोंमें], कदाचित् ज्ञानीको भी होती है।। १३८।।

गाथा १३९
अन्वयार्थः– [प्रमादबहुला चर्या] बहु प्रमादवाली चर्या, [कालुष्यं] कलुषता, [विषयेषु च

लोलता] विषयोंके प्रति लोलुपता, [परपरितापापवादः] परको परिताप करना तथा परके अपवाद बोलना–वह [पापस्य च आस्रवं करोति] पापका आस्रव करता है।

टीकाः– यह, पापास्रवके स्वरूपका कथन है।

बहु प्रमादवाली चर्यारूप परिणति [–अति प्रमादसे भरे हुए आचरणरूप परिणति], कलुषतारूप परिणति, विषयलोलुपतारूप परिणति, परपरितापरूप परिणति [–परको दुःख देनेरूप परिणति] और परके अपवादरूप परिणति–यह पाँच अशुभ भाव द्रव्यपापास्रवको निमित्तमात्ररूपसे ------------------------------------------------------------------------- १। असमग्ररूपसे = अपूर्णरूपसे; अधूरेरूपसे; अंशतः।

चर्या प्रमादभरी, कलुषता, लुब्धता विषयो विषे,
परिताप ने अपवाद परना, पाप–आस्रवने करे। १३९।