कहानजैनशास्त्रमाला] नवपदार्थपूर्वक–मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
अथ निर्जरापदार्थव्याख्यानम्।
कम्माणं णिज्जरणं बहुगाणं
कर्मणां निर्जरणं बहुकानां करोति स नियतम्।। १४४।।
निर्जरास्वरूपाख्यानमेतत्।
शुभाशुभपरिणामनिरोधः संवरः, शुद्धोपयोगो योगः। ताभ्यां युक्तस्तपोभिरनशनावमौदर्य– वृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्तशय्यासनकायक्लेशादिभेदाद्बहिरङ्गैः प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्त्य– स्वाध्यायव्युत्सर्गध्यानभेदादन्तरङ्गैश्च बहुविधैर्यश्चेष्टते स खलु -----------------------------------------------------------------------------
अब निर्जरापदार्थका व्याख्यान है।
जीव [बहुविधैः तपोभिः चेष्टते] बहुविध तपों सहित प्रवर्तता है, [सः] वह [नियतम्] नियमसे [बहुकानाम् कर्मणाम्] अनेक कर्मोंकी [निर्जरणं करोति] निर्जरा करता है।
संवर अर्थात् शुभाशुभ परिणामका निरोध, और योग अर्थात् शुद्धोपयोग; उनसे [–संवर और योगसे] युक्त ऐसा जो [पुरुष], अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तशय्यासन तथा कायक्लेशादि भेदोंवाले बहिरंग तपों सहित और प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्त्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान ऐसे भेदोंवाले अंतरंग तपों सहित–इस प्रकार बहुविध १तपों सहित -------------------------------------------------------------------------
उसमें वर्तता हुआ शुद्धिरूप अंश वह निश्चय–तप है और शुभपनेरूप अंशको व्यवहार–तप कहा जाता है। [मिथ्याद्रष्टिको निश्चय–
यथार्थ तपका सद्भाव ही नहीं है, वहाँ उन शुभ भावोंमें आरोप किसका किया जावे?]
जे योग–संवरयुक्त जीव बहुविध तपो सह परिणमे,
तेने नियमथी निर्जरा बहु कर्म केरी थाय छे। १४४।