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मिथ्यात्वादिद्रव्यपर्यायाणामपि बहिरङ्गकारणद्योतनमेतत्।
तन्त्रान्तरे किलाष्टविकल्पकर्मकारणत्वेन बन्धहेतुर्द्रव्यहेतुरूपश्चतुर्विकल्पः प्रोक्तः मिथ्या– त्वासंयमकषाययोगा इति। तेषामपि जीवभावभूता रागादयो बन्धहेतुत्वस्य हेतवः, यतो रागादिभावानामभावे द्रव्यमिथ्यात्वासंयमकषाययोगसद्भावेऽपि जीवा न बध्यन्ते। ततो रागा– दीनामन्तरङ्गत्वान्निश्चयेन बन्धहेतुत्वमवसेयमिति।। १४९।।
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बहिरंग–कारणपनेका प्रकाशन है।
ग्रंथान्तरमें [अन्य शास्त्रमें] मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और योग इन चार प्रकारके द्रव्यहेतुओंको [द्रव्यप्रत्ययोंको] आठ प्रकारके कर्मोंके कारणरूपसे बन्धहेतु कहे हैं। उन्हें भी बन्धहेतुपनेके हेतु जीवभावभूत रागादिक हैं; क्योंकि २रागादिभावोंका अभाव होने पर द्रव्यमिथ्यात्व, द्रव्य–असंयम, द्रव्यकषाय और द्रव्ययोगके सद्भावमें भी जीव बंधते नहीं हैं। इसलिये रागादिभावोंको अंतरंग बन्धहेतुपना होनेके कारण ३निश्चयसे बन्धहेतुपना है ऐसा निर्णय करना।। १४९।।
इस प्रकार बंधपदार्थका व्याख्यान समाप्त हुआ। ------------------------------------------------------------------------- १। प्रकाशन=प्रसिद्ध करना; समझना; दर्शाना। २। जीवगत रागादिरूप भावप्रत्ययोंका अभाव होने पर द्रव्यप्रत्ययोंके विद्यमानपनेमें भी जीव बंधते नहीं हैं। यदि
अवकाश ही न रहे], क्योंकि संसारीयोंको सदैव कर्मोदयका विद्यमानपना होता है।
३। उदयगत द्रव्यमिथ्यात्वादि प्रत्ययोंकी भाँति रागादिभाव नवीन कर्मबन्धमें मात्र बहिरंग निमित्त नहीं है किन्तु वे