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] पंचास्तिकायसंग्रह
[भगवानश्रीकुन्दकुन्द
मार्गप्रभावनार्थं प्रवचनभक्तिप्रचोदितेन मया।
भणितं प्रवचनसारं पञ्चास्तिकसंग्रहं सूत्रम्।। १७३।।
कर्तुः प्रतिज्ञानिर्व्यूढिसूचिका समापनेयम् । मार्गो हि परमवैराग्यकरणप्रवणा पारमेश्वरी
परमाज्ञा; तस्या प्रभावनं प्रख्यापनद्वारेण प्रकृष्टपरिणतिद्वारेण वा समुद्योतनम्; तदर्थमेव
परमागमानुरागवेगप्रचलितमनसा संक्षेपतः समस्तवस्तुतत्त्वसूचकत्वादतिविस्तृतस्यापि
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गाथा १७३
अन्वयार्थः– [प्रवचनभक्तिप्रचोदितेन मया] प्रवचनकी भक्तिसे प्रेरित ऐसे मैने [मार्गप्रभावनार्थं]
मार्गकी प्रभावके हेतु [प्रवचनसारं] प्रवचनके सारभूत [पञ्चास्तिकसंग्रहं सूत्रम्] ‘पंचास्तिकायसंग्रह’
सूत्र [भणितम्] कहा।
टीकाः– यह, कर्ताकी प्रतिज्ञाकी पूर्णता सूचितवाली समाप्ति है [अर्थात् यहाँ शास्त्रकर्ता
श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेव अपनी प्रतिज्ञाकी पूर्णता सूचित करते हुए शास्त्रसमाप्ति करते हैं]।
मार्ग अर्थात् परम वैराग्य की ओर ढलती हुई पारमेश्वरी परम आज्ञा [अर्थात् परम वैराग्य
करनेकी परमेश्वरकी परम आज्ञा]; उसकी प्रभावना अर्थात् प्रख्यापन द्वारा अथवा प्रकृष्ट परिणति द्वारा
उसका समुद्योत करना; [परम वैराग्य करनेकी जिनभगवानकी परम आज्ञाकी प्रभावना अर्थात् [१]
उसकी प्रख्याति–विज्ञापन–करने द्वारा अथवा [२] परमवैराग्यमय प्रकृष्ट परिणमन द्वारा, उसका
सम्यक् प्रकारसे उद्योत करना;] उसके हेतु ही [–मार्गकी प्रभावनाके लिये ही], परमागमकी ओरके
अनुरागके वेगसे जिसका मन अति चलित होता था ऐसे मैंने यह ‘पंचास्तिकायसंग्रह’ नामका सूत्र
कहा–जो कि भगवान सर्वज्ञ द्वारा उपज्ञ होनेसे [–वीतराग सर्वज्ञ जिनभगवानने स्वयं जानकर
प्रणीत किया होनेसे] ‘सूत्र’ है, और जो संक्षेपसे समस्तवस्तुतत्त्वका [सर्व वस्तुओंके यथार्थ
स्वरूपका] प्रतिपादन करता होनेसे, अति विस्तृत ऐसे भी प्रवचनके सारभूत हैं [–द्वादशांगरूपसे
विस्तीर्ण ऐसे भी जिनप्रवचनके सारभूत हैं]।