Panchastikay Sangrah (Hindi).

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] पंचास्तिकायसंग्रह
[भगवानश्रीकुन्दकुन्द
द्वयणुकपुद्गलस्कन्धानामपि तथाविधत्वम्। अणवश्च महान्तश्च व्यक्तिशक्तिरूपाभ्यामिति परमाणु–
नामेकप्रदेशात्मकत्वेऽपि तत्सिद्धिः। व्यक्तयपेक्षया शक्तयपेक्षया च प्रदेश प्रचयात्मकस्य
महत्त्वस्याभावात्कालाणूनामस्तित्वनियतत्वेऽप्यकायत्वमनेनैव साधितम्। अत एव तेषामस्तिकाय–
प्रकरणे सतामप्यनुपादानमिति।। ४।।
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उनके कायपना भी है क्योंकि वे अणुमहान हैं। यहाँ अणु अर्थात् प्रदेश–मूर्त और अमूर्त
निर्विभाग [छोटेसे छोटे] अंश; ‘उनके द्वारा [–बहु प्रदेशों द्वारा] महान हो’ वह अणुमहान; अर्थात्
प्रदेशप्रचयात्मक [–प्रदेशोंके समूहमय] हो वह अणुमहान है। इसप्रकार उन्हें [उपर्युक्त पाँच
द्रव्योंको] कायत्व सिद्ध हुआ। [उपर जो अणुमहानकी व्युत्पत्ति की उसमें अणुओंके अर्थात् प्रदेशोंके
लिये बहुवचनका उपयोग किया है और संस्कृत भाषाके नियमानुसार बहुवचनमें द्विवचनका समावेश
नहीं होता इसलिये अब व्युत्पत्तिमें किंचित् भाषाका परिवर्तन करके द्वि–अणुक स्कंधोंको भी अणुमहान
बतलाकर उनका कायत्व सिद्ध किया जाता हैः] ‘दो अणुओं [–दो प्रदेशों] द्वारा महान हो’ वह
अणुमहान– ऐसी व्युत्पत्तिसे द्वि–अणुक पुद्गलस्कंधोंको भी [अणुमहानपना होनेसे] कायत्व है।
[अब, परमाणुओंको अणुमहानपना किसप्रकार है वह बतलाकर परमाणुओंको भी कायत्व सिद्ध किया
जाता है;] व्यक्ति और शक्तिरूपसे ‘अणु तथा महान’ होनेसे [अर्थात् परमाणु व्यक्तिरूपसे एक प्रदेशी
तथा शक्तिरूपसे अनेक प्रदेशी होनेके कारण] परमाणुओंको भी , उनके एक प्रदेशात्मकपना होने
पर भी [अणुमहानपना सिद्ध होनेसे] कायत्व सिद्ध होता है। कालाणुओंको व्यक्ति–अपेक्षासे तथा
शक्ति–अपेक्षासे प्रदेशप्रचयात्मक महानपनेका अभाव होनेसे, यद्यपि वे अस्तित्वमें नियत है तथापि,
उनके अकायत्व है ––ऐसा इसीसे [–इस कथनसे ही] सिद्ध हुआ। इसलिये, यद्यपि वे सत्
[विद्यमान] हैं तथापि, उन्हें अस्तिकायके प्रकरणमें नहीं लिया है।
भावार्थः– पाँच अस्तिकायोंके नाम जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश हैं। वे नाम उनके
अर्थानुसार हैं ।

ये पाँचों द्रव्य पर्यायार्थिक नयसे अपनेसे कथंचित भिन्न ऐसे अस्तित्वमें विद्यमान हैं और
द्रव्यार्थिक नयसे अस्तित्वसे अनन्य हैं।