ते होंति अत्थिकाया णिप्पिण्णं जेहिं तइल्लुक्कं।। ५।।
ते भवन्त्यस्तिकायाः निष्पन्नं यैस्त्रैलोक्यम्।। ५।।
अणुमहान्तः अर्थात जो बहु प्रदेशों द्वारा [– दो से अधिक प्रदेशों द्वारा] बडे़ हों वे अणुमहान हैं।
इस व्युत्पत्तिके अनुसार जीव, धर्म और अधर्म असंख्यप्रदेशी होनेसे अणुमहान हैं; आकाश अनंतप्रदेशी
होनेसे अणुमहान है; और त्रि–अणुक स्कंधसे लेकर अनन्ताणुक स्कंध तकके सर्व स्कन्ध बहुप्रदेशी
होनेसे अणुमहान है। [२] अणुभ्याम् महान्तः अणुमहान्तः अर्थात जो दो प्रदेशों द्वारा बडे़ हों वे
अणुमहान हैं। इस व्युत्पत्तिके अनुसार द्वि–अणुक स्कंध अणुमहान हैं। [३] अणवश्च महान्तश्च
अणुमहान्तः अर्थात् जो अणुरूप [–एक प्रदेशी] भी हों और महान [अनेक प्रदेशी] भी हों वे
अणुमहान हैं। इस व्युत्पत्तिके अनुसार परमाणु अणुमहान है, क्योंकि व्यक्ति–अपेक्षासे वे एकप्रदेशी हैं
और शक्ति–अपेक्षासे अनेकप्रदेशी भी [उपचारसे] हैं। इसप्रकार उपर्युक्त पाँचों द्रव्य अणुमहान
होनेसे कायत्ववाले हैं ऐसा सिद्ध हुआ।
कालाणुको अस्तित्व है किन्तु किसी प्रकार भी कायत्व नहीं है, इसलिये वह द्रव्य है किन्तु
[अस्तिकायाः भवन्ति] अस्तिकाय है [यैः] कि जिनसे [त्रैलोक्यम्] तीन लोक [निष्पन्नम्] निष्पन्न
है।
किन्तु विस्तारक्रमके अंश अस्तिकायके ही होते हैं।]
ते अस्तिकायो जाणवा, त्रैलोक्यरचना जे वडे। ५।