कहानजैनशास्त्रमाला] षड्द्रव्य–पंचास्तिकायवर्णन
व्ययध्रौव्याणि वा द्रव्यलक्षणम्। एकजात्यविरोधिनि क्रमभुवां भावानां संताने पूर्वभावविनाशः सुमच्छेदः, उत्तरभावप्रादुर्भावश्च समुत्पादः, पूर्वोतरभावोच्छेदोत्पादयोरपि स्वजातेरपरित्यागो ध्रौव्यम्। तानि सामान्यादेशाद–भिन्नानि विशेषादेशाद्भिन्नानि युगपद्भावीनि स्वभावभूतानि द्रव्यस्य लक्षणं भवन्तीति। गुणपर्याया वा द्रव्यलक्षणम्। अनेकान्तात्मकस्य वस्तुनोऽन्वयिनो विशेषा गुणा व्यतिरेकिणः पर्यायास्ते द्रव्ये यौगपद्येन क्रमेण च प्रवर्तमानाः कथञ्चिद्भिन्नाः कथञ्चिदभिन्नाः स्वभावभूताः द्रव्यलक्षणतामा– ----------------------------------------------------------------------------- द्रव्यका लक्षण है। प्रश्नः–– यदि सत्ता और द्रव्य अभिन्न है – सत्ता द्रव्यका स्वरूप ही है, तो ‘सत्ता लक्षण है और द्रव्य लक्ष्य है’ – ऐसा विभाग किसप्रकार घटित होता है? उत्तरः–– अनेकान्तात्मक द्रव्यके अनन्त स्वरूप हैें, उनमेंसे सत्ता भी उसका एक स्वरूप है; इसलिये अनन्तस्वरूपवाला द्रव्य लक्ष्य है और उसका सत्ता नामका स्वरूप लक्षण है – ऐसा लक्ष्यलक्षणविभाग अवश्य घटित होता है। इसप्रकार अबाधितरूपसे सत् द्रव्यका लक्षण है।]
अथवा, उत्पादव्ययध्रौव्य द्रव्यका लक्षण है। १एक जातिका अविरोधक ऐसा जो क्रमभावी
भावोंका प्रवाह उसमें पूर्व भावका विनाश सो व्यय है, उत्तर भावका प्रादुर्भाव [–बादके भावकी अर्थात वर्तमान भावकी उत्पत्ति] सो उत्पाद है और पूर्व–उत्तर भावोंके व्यय–उत्पाद होने पर भी स्वजातिका अत्याग सो ध्रौव्य है। वे उत्पाद–व्यय–ध्रौव्य –– जो–कि सामान्य आदेशसे अभिन्न हैं [अर्थात सामान्य कथनसे द्रव्यसे अभिन्न हैं], विशेष आदेशसे [द्रव्यसे] भिन्न हैं, युगपद् वर्तते हैें और स्वभावभूत हैं वे – द्रव्यका लक्षण हैं।
व्यतिरेकी विशेष वे पर्यायें हैं। वे गुणपर्यायें [गुण और पर्यायें] – जो कि द्रव्यमें एक ही साथ तथा क्रमशः प्रवर्तते हैं, [द्रव्यसे] कथंचित भिन्न और कथंचित अभिन्न हैं तथा स्वभावभूत हैं वे – द्रव्यका लक्षण हैं।
-------------------------------------------------------------------------- १। द्रव्यमें क्रमभावी भावोंका प्रवाह एक जातिको खंडित नहीं करता–तोड़ता नहीं है अर्थात् जाति–अपेक्षासे
२। अन्वय और व्यतिरेकके लिये पृष्ठ १४ पर टिप्पणी देखिये।