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पद्यन्ते। त्रयाणामप्यमीषां द्रव्यलक्षणानामेकस्मिन्नभिहितेऽन्यदुभयमर्थादेवापद्यते। सच्चेदुत्पाद– व्ययध्रौव्यवच्च गुणपर्यायवच्च। उत्पादव्ययध्रौव्यवच्चेत्सच्च गुणपर्यायवच्च। गुणपर्यायवच्चेत्स– च्चोत्पादव्ययध्रौव्यवच्चेति। सद्धि निन्यानित्यस्वभावत्वाद्ध्रुवत्वमुत्पादव्ययात्मकताञ्च प्रथयति, ध्रुवत्वात्मकैर्गुणैरुत्पादव्ययात्मकैः पर्यायैश्च सहैकत्वञ्चाख्याति। उत्पादव्ययध्रौव्याणि तु नित्या–नित्यस्वरूपं परमार्थं सदावेदयन्ति, गुणपर्यायांश्चात्मलाभनिबन्धनभूतान प्रथयन्ति। -----------------------------------------------------------------------------
द्रव्यके इन तीनों लक्षणोंमेंसे [–सत्, उत्पादव्ययध्रौव्य और गुणपर्यायें इन तीन लक्षणोंमेंसे] एक का कथन करने पर शेष दोनों [बिना कथन किये] अर्थसे ही आजाते हैं। यदि द्रव्य सत् हो, तो वह [१] उत्पादव्ययध्रौव्यवाला और [२] गुणपर्यायवाला होगा; यदि उत्पादव्ययध्रौव्यवाला हो, तो वह [१] सत् और [२] गुणपर्यायवाला होगा; गुणपर्यायवाला हो, तो वह [१] सत् और [२] उत्पादव्ययध्रौव्यवाला होगा। वह इसप्रकारः– सत् नित्यानित्यस्वभाववाला होनेसे [१] ध्रौव्यकोे और उत्पादव्ययात्मकताको प्रकट करता है तथा [२] ध्रौव्यात्मक गुणों और उत्पादव्ययात्मक पर्यायोंके साथ एकत्व दर्शाता है। उत्पादव्ययध्रौव्य [१] नित्यानित्यस्वरूप १पारमार्थिक सत्को बतलाते हैं तथा [२] २अपने स्वरूपकी प्राप्तिके कारणभूत गुणपर्यायोंको प्रकट करते हैं, ३गुणपर्यायें अन्वय और -------------------------------------------------------------------------- १। पारमार्थिक=वास्तविक; यथार्थ; सच्चा । [वास्तविक सत् नित्यानित्यस्वरूप होता है। उत्पादव्यय अनित्यताको
इसप्रकार ‘द्रव्य उत्पादव्ययध्रौव्यवाला है ’ ऐसा कहनेसे ‘वह सत् है’ ऐसा भी बिना कहे ही आजाता है।]
२। अपने= उत्पादव्ययध्रौव्यके। [यदि गुण हो तभी ध्रौव्य होता है और यदि पर्यायें हों तभी उत्पादव्यय होता
‘द्रव्य उत्पादव्ययध्रौव्यवाला है’ –ऐसा कहनेसे वह गुणपर्यायवाला भी सिद्ध हो जाता है।]
३। प्रथम तो, गुणपर्यायें अन्वय द्वारा ध्राव्यको सिूचत करते हैं और व्यतिरेक द्वारा उत्पादव्ययने सिूचत करते हैं ;
व्यतिरेक द्वारा अनित्यतको बतलाते हैं ; –इसप्रकार वे नित्यानित्यस्वरूप सत्को बतलाते हैं।