Panchastikay Sangrah (Hindi).

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] पंचास्तिकायसंग्रह
[भगवानश्रीकुन्दकुन्द

२८

पद्यन्ते। त्रयाणामप्यमीषां द्रव्यलक्षणानामेकस्मिन्नभिहितेऽन्यदुभयमर्थादेवापद्यते। सच्चेदुत्पाद– व्ययध्रौव्यवच्च गुणपर्यायवच्च। उत्पादव्ययध्रौव्यवच्चेत्सच्च गुणपर्यायवच्च। गुणपर्यायवच्चेत्स– च्चोत्पादव्ययध्रौव्यवच्चेति। सद्धि निन्यानित्यस्वभावत्वाद्ध्रुवत्वमुत्पादव्ययात्मकताञ्च प्रथयति, ध्रुवत्वात्मकैर्गुणैरुत्पादव्ययात्मकैः पर्यायैश्च सहैकत्वञ्चाख्याति। उत्पादव्ययध्रौव्याणि तु नित्या–नित्यस्वरूपं परमार्थं सदावेदयन्ति, गुणपर्यायांश्चात्मलाभनिबन्धनभूतान प्रथयन्ति। -----------------------------------------------------------------------------

द्रव्यके इन तीनों लक्षणोंमेंसे [–सत्, उत्पादव्ययध्रौव्य और गुणपर्यायें इन तीन लक्षणोंमेंसे] एक का कथन करने पर शेष दोनों [बिना कथन किये] अर्थसे ही आजाते हैं। यदि द्रव्य सत् हो, तो वह [१] उत्पादव्ययध्रौव्यवाला और [२] गुणपर्यायवाला होगा; यदि उत्पादव्ययध्रौव्यवाला हो, तो वह [१] सत् और [२] गुणपर्यायवाला होगा; गुणपर्यायवाला हो, तो वह [१] सत् और [२] उत्पादव्ययध्रौव्यवाला होगा। वह इसप्रकारः– सत् नित्यानित्यस्वभाववाला होनेसे [१] ध्रौव्यकोे और उत्पादव्ययात्मकताको प्रकट करता है तथा [२] ध्रौव्यात्मक गुणों और उत्पादव्ययात्मक पर्यायोंके साथ एकत्व दर्शाता है। उत्पादव्ययध्रौव्य [१] नित्यानित्यस्वरूप पारमार्थिक सत्को बतलाते हैं तथा [२] अपने स्वरूपकी प्राप्तिके कारणभूत गुणपर्यायोंको प्रकट करते हैं, गुणपर्यायें अन्वय और -------------------------------------------------------------------------- १। पारमार्थिक=वास्तविक; यथार्थ; सच्चा । [वास्तविक सत् नित्यानित्यस्वरूप होता है। उत्पादव्यय अनित्यताको

और ध्रौव्य नित्यताको बतलाता है इसलिये उत्पादव्ययध्रौव्य नित्यानित्यस्वरूप वास्तविक सत्को बतलाते है।
इसप्रकार ‘द्रव्य उत्पादव्ययध्रौव्यवाला है ’ ऐसा कहनेसे ‘वह सत् है’ ऐसा भी बिना कहे ही आजाता है।]

२। अपने= उत्पादव्ययध्रौव्यके। [यदि गुण हो तभी ध्रौव्य होता है और यदि पर्यायें हों तभी उत्पादव्यय होता

है; इसलिये यदि गुणपर्यायें न हों तो उत्पादव्ययध्रौव्य अपने स्वरूपको प्राप्त हो ही नहीं सकते। इसप्रकार
‘द्रव्य उत्पादव्ययध्रौव्यवाला है’ –ऐसा कहनेसे वह गुणपर्यायवाला भी सिद्ध हो जाता है।]

३। प्रथम तो, गुणपर्यायें अन्वय द्वारा ध्राव्यको सिूचत करते हैं और व्यतिरेक द्वारा उत्पादव्ययने सिूचत करते हैं ;

इसप्रकार वे उत्पादव्ययध्रौव्यको सिूचत करते हैं। दूसरे, गुणपर्यायें अन्वय द्वारा नित्यताको बतलाते हैं और
व्यतिरेक द्वारा अनित्यतको बतलाते हैं ; –इसप्रकार वे नित्यानित्यस्वरूप सत्को बतलाते हैं।