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द्रव्यस्य हि सहक्रमप्रवृत्तगुणपर्यायसद्भावरूपस्य त्रिकालावस्थायिनोऽनादिनिधनस्य न समुच्छेदसमुदयौ युक्तौ। अथ तस्यैव पर्यायाणां सहप्रवृत्तिभाजां केषांचित् ध्रौव्यसंभवेऽप्यरेषां क्रमप्रवृत्तिभाजां विनाशसंभवसंभावनमुपपन्नम्। ततो द्रव्यार्थार्पणायामनुत्पादमुच्छेदं सत्स्वभावमेव द्रव्यं, तदेव पर्यायार्थार्पणायां सोत्पादं सोच्छेदं चावबोद्धव्यम्। सर्वमिदमनवद्यञ्च द्रव्यपर्यायाणामभेदात्।। ११।।
दोण्हं अणण्णभूदं भावं समणा परुविंति।। १२।।
द्वयोरनन्यभूतं भावं श्रमणाः प्ररूपयन्ति।। १२।।
अत्र द्रव्यपर्यायाणामभेदो निर्दिष्ट। ----------------------------------------------------------------------------- सहवर्ती कतिपय [पर्यायों] का ध्रौव्य होने पर भी अन्य क्रमवर्ती [पर्यायों] के–विनाश और उत्पाद होना घटित होते हैं। इसलिये द्रव्य द्रव्यार्थिक आदेशसे [–कथनसे] उत्पाद रहित, विनाश रहित, सत्स्वभाववाला ही जानना चाहिये और वही [द्रव्य] पर्यायार्थिक आदेशसे उत्पादवाला और विनाशवाला जानना चाहिये।
–––यह सब निरवद्य [–निर्दोष, निर्बाध, अविरुद्ध] है, क्योंकि द्रव्य और पर्यायोंका अभेद [–अभिन्नपना ] है।। ११।।
अन्वयार्थः– [पर्ययवियुतं] पर्यायोंसे रहित [द्रव्यं] द्रव्य [च] और [द्रव्यवियुक्ताः] द्रव्य रहित [पर्यायाः] पर्यायें [न सन्ति] नहीं होती; [द्वयोः] दोनोंका [अनन्यभूतं भावं] अनन्यभाव [– अनन्यपना] [श्रमणाः] श्रमण [प्ररूपयन्ति] प्ररूपित करते हैं।
टीकाः– यहाँ द्रव्य और पर्यायोंका अभेद दर्शाया है। --------------------------------------------------------------------------
पर्याय तेम ज द्रव्य केरी अनन्यता श्रमणो कहे। १२।