Panchastikay Sangrah (Hindi). Gatha: 13.

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कहानजैनशास्त्रमाला] षड्द्रव्य–पंचास्तिकायवर्णन
[
३१
दुग्धदधिनवनीतधृतादिवियुतगोरसवत्पर्यायवियुतं द्रव्यं नास्ति। गोरसवियुक्तदुग्धदधि–
नवनीतधृतादिवद्र्रव्यवियुक्ताः पर्याया न सन्ति। ततो द्रव्यस्य पर्यायाणाञ्चादेशवशात्कथंचिद्भेदेऽ–
प्पेकास्तित्वनियतत्वादन्योन्याजहद्वृत्तीनां वस्तुत्वेनाभेद इति।। १२।।
देव्वेण विणा ण गुणा गुणहिं दव्वं विणा ण संभवदि।
अव्वदिरित्तो भावो
दव्वगुणाणं हवदि तम्हा।। १३।।
द्रव्येण विना न गुणा गुणैर्द्रव्यं विना न सम्भवति।
अव्यतिरिक्तो भावो द्रव्यगुणानां भवति तस्मात्।। १३।।
अत्रद्रव्यगुणानामभेदो निर्दष्टः।
पुद्गलपृथग्भूतस्पर्शरसगन्धवर्णवद्र्रव्येण विना न गुणाः संभवन्ति स्पर्शरस–
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जिसप्रकार दूध, दही, मक्खण, घी इत्यादिसे रहित गोरस नहीं होता उसीप्रकार पर्यायोंसे
रहित द्रव्य नहीं होता; जिसप्रकार गोरससे रहित दूध, दही, मक्खण, घी इत्यादि नहीं होते
उसीप्रकार द्रव्यसे रहित पर्यायें नहीं होती। इसलिये यद्यपि द्रव्य और पर्यायोंका आदेशवशात् [–
कथनके वश] कथंचित भेद है तथापि, वे एक अस्तित्वमें नियत [–द्रढ़रूपसे स्थित] होनेके कारण
अन्योन्यवृत्ति नहीं छोड़ते इसलिए वस्तुरूपसे उनका अभेद है।। १२।।
गाथा १३
अन्वयार्थः– [द्रव्येण विना] द्रव्य बिना [गुणः न] गुण नहीं होते, [गुणैः विना] गुणों बिना
[द्रव्यं न सम्भवति] द्रव्य नहीं होता; [तस्मात्] इसलिये [द्रव्यगुणानाम्] द्रव्य और गुणोंका
[अव्यतिरिक्तः भावः] अव्यतिरिक्तभाव [–अभिन्नपणुं] [भवति] है।
टीकाः– यहाँ द्रव्य और गुणोंका अभेद दर्शाया है ।
जिसप्रकार पुद्गलसे पृथक् स्पर्श–रस–गंध–वर्ण नहीं होते उसीप्रकार द्रव्यके बिना गुण नहीं
होते; जिसप्रकार स्पर्श–रस–गंध–वर्णसे पृथक् पुद्गल नहीं होता उसीप्रकार गुणोंके बिना द्रव्य
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अन्योन्यवृत्ति=एक–दूसरेके आश्रयसे निर्वाह करना; एक–दूसरेके आधारसे स्थित रहना; एक–दूसरेके बना
रहना।
नहि द्रव्य विण गुण होय, गुण विण द्रव्य पण नहि होय छे;
तेथी गुणो ने द्रव्य केरी अभिन्नता निर्दिष्ट छे। १३।