परद्रव्यक्षेत्रकालभावैरादिष्टं नास्ति द्रव्यं, स्वद्रव्यक्षेत्रकालभावैः परद्रव्यक्षेत्रकालभावैश्च क्रमेणा–
दिष्टमस्ति च नास्ति च दव्यं, स्वद्रव्यक्षेत्रकालभावैः परद्रव्यक्षेत्रकालभावैश्च युगपदादिष्टमवक्तव्यं द्रव्यं,
स्वद्रव्यक्षेत्रकालभावैर्युगपत्स्वपरद्रव्यक्षेत्रकालभावैश्चादिष्टमस्ति चावक्तव्यं च द्रव्यं, चरद्रव्य–
क्षेत्रकालभावैर्युगपत्स्वपरद्रव्यक्षेत्रकालभावैश्चादिष्टं नास्ति चावक्तव्यं च द्रव्यं, स्वद्रव्यक्षेत्र–कालभावैः
परद्रव्यक्षेत्रकालभावैश्च युगपत्स्वपरद्रव्यक्षेत्रकालभावैश्चादिष्टमस्ति च नास्ति चावक्तव्यं च द्रव्यमिति। न
चैतदनुपपन्नम्, सर्वस्य वस्तुनः स्वरूपादिना अशून्यत्वात्, पररूपादिना शून्यत्वात्,
पर ‘अस्ति’ है; [२] द्रव्य परद्रव्य–क्षेत्र–काल–भावसे कथन किया जाने पर ‘नास्ति’ हैे; [३] द्रव्य
स्वद्रव्य–क्षेत्र–काल–भावसे और परद्रव्य–क्षेत्र–काल–भावसे क्रमशः कथन किया जाने पर ‘अस्ति
और नास्ति’ है; [४] द्रव्य स्वद्रव्य–क्षेत्र–काल–भावसे और परद्रव्य–क्षेत्र–काल–भावसे युगपद्
कथन किया जाने पर ‘
काल–भावसे और युगपद् स्वपरद्रव्य–क्षेत्र–काल–भावसे कथन किया जाने पर ‘नास्ति और
अवक्तव्य’ है; [७] द्रव्य स्वद्रव्य–क्षेत्र–काल–भावसे, परद्रव्य–क्षेत्र–काल–भावसे और युगपद्
स्वपरद्रव्य–क्षेत्र–काल–भावसे कथन किया जाने पर ‘अस्ति, नास्ति और अवक्तव्य’ है। – यह
[उपर्युक्त बात] अयोग्य नहीं है, क्योंकि सर्व वस्तु [१] स्वरूपादिसे ‘
२। अवक्तव्य=जो कहा न जा सके; अवाच्य। [एकही साथ स्वचतुष्टय तथा परचतुष्टयकी अपेक्षासे द्रव्य कथनमें
३। अशून्य=जो शून्य नहीं है ऐसा; अस्तित्व वाला; सत्।
४। शून्य=जिसका अस्तित्व नहीं है ऐसा; असत्।