Panchastikay Sangrah (Hindi). Publisher's Note.

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नमः श्री परमागमजिनश्रुताय ।
* प्रकाशकीय निवेदन *
तीर्थनायक भगवान श्री महावीरस्वामीकी दिव्यध्वनीसे प्रवाहित और श्री गौतम गणधर आदि
गुरु परम्परा द्वारा प्राप्त हुए परमपावन आध्यात्मप्रवाहको झेलकर तथा विदेहक्षेत्रस्थ श्री सिमन्धर
जिनवरकी साक्षात वन्दना एवं देशना श्रवणसे पुष्टकर, उसे भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवने समयसारादि
परमागमरूप भाजनमें संग्रहित कर आध्यात्मतत्चप्रेमी जगत पर महान उपकार किया है।
आध्यात्मश्रुतप्रणेता ऋषिश्चर श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेव द्वारा प्रणीत रचनाओंमें श्री समयसार, श्री
प्रवचनसार, श्री पंचास्तिकायसंग्रह, श्री नियमसार और श्री अष्टप्राभृत – ये पाँच परमागम मुख्य हैं।
ये पाचों परमागम हमारे ट्रस्ट द्वारा गुजराती एवं हिन्दी भाषामें अनेक बार प्रसिद्ध हो चुके हैं।
टीकाकार श्रीमद्–अमृतचन्द्राचार्यदेवकी ‘समयव्याख्या’ नामक टीका सहित ‘पंचास्तिकायसंग्रह’ के
श्री हिम्मतलाल जेठालाल शाह कृत गुजराती अनुवादके हिन्दी रूपान्तरका यह पंचम संस्करण
आध्यात्मविद्याप्रेमी जिज्ञासुओंके हाथमें प्रस्तुत करते हुए आनन्द अनुभूत होता है।

श्री कुन्दकुन्दभारतीके अनन्य परम भक्त, आध्यात्मयुगप्रवर्तक, परमोपकारी पूज्य सद्गुरुदेव श्री
कानजीस्वामीने इस परमागम शास्त्र पर अनेक बार प्रवचनों द्वारा उसके गहन रहस्योंका उद्घाटन
किया है। वास्तवमें इस शताद्बीमें आध्यात्मरुचिके नवयुगका प्रवर्तन कर मुुमुुक्षुसमाज पर उन्होंने
असाधारण महान उपकार किया है। इस भौतिक विषम युगमें, भारतवर्ष एवं विदेशोंमें भी,
आध्यात्मके प्रचारका जो आन्दोलन प्रवर्तता है वह पूज्य गुरुदेवश्रीके चमत्कारी प्रभावनायोगका ही
सुन्दर फल है।

पूज्य गुरुदेवश्रीके पुनीत प्रतापसे ही जैन आध्यात्मश्रुतके अनेक परमागमरत्न मुमुक्षुजगतको
प्राप्त हुए हैं। यह संस्करण जिसका हिन्दी रूपान्तर है वह [पंचास्तिकायसंग्रह परमागमका]
गुजराती गद्यपद्यानुवाद भी, श्री समयसार आदिके गुजराती गद्यपद्यानुवादकी भाँति, प्रशममूर्ति पूज्य
बहिनश्री चम्पाबेनके भाई आध्यात्मतत्त्वरसिक, विद्वद्वर, आदरणीय पं० श्री हिम्मतलाल जेठालाल
शाहने, पूज्य गुरुदेव द्वारा दिये गये शुद्धात्मदर्शी उपदेशामृतबोध द्वारा शास्त्रोंके गहन भावोंको
खोलनेकी सूझ प्राप्त कर, आध्यात्म– जिनवाणीकी अगाध भक्तिसे सरल भाषामें – आबालवृद्धग्राह्य,
रोचक एवं सुन्दर ढंगसे – कर दिया है। अनुवादक महानुभव आध्यात्मरसिक विद्वान होनेके
अतिरिक्त गम्भीर, वैराग्यशाली, शान्त एवं विवेकशील सज्जन है, तथा उनमें आध्यात्मरस स्यन्दी
मधुर कवित्व भी है। वे बहुत वर्षो तक पूज्य गुरुदेवके समागममें रहे हैं, और पूज्य गुरुदेवके
आध्यात्मप्रवचनोंके गहन मनन द्वारा उन्होंने अपनी आत्मार्थिता की बहुत पुष्टि की है। तत्त्चार्थके मूल
रहस्यों पर उनका मनन अति गहन है। शास्त्रकार एवं टीकाकार आचार्यभगवन्तोंके हृदयके गहन
भावोंकी गम्भीरताको यथावत् सुरक्षित रखकर उन्होंने यह शद्बशः गुजराती अनुवाद किया है;
तदुपरान्त मूल गाथासुत्रोंका भावपूर्ण मधुर गुजराती पद्यानुवाद भी
(हरिगीतछन्दमें) उन्होंने किया है,
जो इस अनुवादकी मधुरता में अतीव अधिकता लाता है और स्वाध्याय प्रेमियोंको बहुतही