Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-৮৭ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৩৬৩
सहजानन्दैकसुखास्वादरूपः स्वशुद्धात्मैव उपादेय इति रुचिरूपं सम्यग्दर्शनं, तस्यैव परमात्मनः
समस्तमिथ्यात्वरागाद्यास्रवेभ्यः पृथग्रूपेण परिच्छित्तिरूपं सम्यग्ज्ञानं, तत्रैव रागादिपरिहाररूपेण
निश्चलचित्तवृत्तिः सम्यक्चारित्रम् इत्येवं निश्चयरत्नत्रयस्वरूपं तत्त्रयात्मकमात्मानमरोचमानस्तथै-
वाजानन्नभावयंश्च मूढात्मा । किं करोति । समस्तं जगद्धर्मब्याजेन ग्रहीतुमिच्छति, पूर्वोक्त ज्ञानी
तु त्यक्तु मिच्छतीति भावार्थः ।।८७।।
अथ शिष्यकरणाद्यनुष्ठानेन पुस्तकाद्युपकरणेनाज्ञानी तुष्यति, ज्ञानी पुनर्बन्धहेतुं जानन्
सन् लज्जां करोतीति प्रकटयति —
२१५) चेल्ला-चेल्ली-पुत्थियहिँ तूसइ मूढु णिभंतु ।
एयहिँ लज्जइ णाणियउ बंधहँ हेउ मुणंतु ।।८८।।
উপাদেয ছে এবী রুচিরূপ সম্যগ্দর্শন, তে জ পরমাত্মানুং সমস্ত মিথ্যাত্ব, রাগাদি আস্রবোথী
পৃথক্রূপে পরিচ্ছিত্তিরূপ সম্যগ্জ্ঞান অনে রাগাদিনা পরিহাররূপে তে জ পরমাত্মামাং
নিশ্চলচিত্তবৃত্তিরূপ সম্যক্চারিত্র এবা নিশ্চযরত্নত্রযস্বরূপ ত্রযাত্মক আত্মানী রুচি ন করতো
তেম জ তেনে ন জাণতো অনে তেনে ন ভাবতো মূঢাত্মা সমস্ত জগতনে ধর্মনা বহানাথী
(ভোগববানা বহানাথী) গ্রহণ করবানে ইচ্ছে ছে, জ্যারে পূর্বোক্ত জ্ঞানী (জগতনা সমস্ত
ভোগোনে) ছোডবা ইচ্ছে ছে. ৮৭.
হবে, শিষ্য করবা আদিনা কার্যথী অনে পুস্তক আদিনা উপকরণথী অজ্ঞানী সংতোষ
পামে ছে অনে জ্ঞানী তেনে বংধনো হেতু জাণতো থকো (তেমনাথী) লজ্জা পামে ছে, এম হবে কহে
ছে : —
योग्य है, ऐसी जो रुचि वह सम्यग्दर्शन, समस्त मिथ्यात्व रागादि आस्रवसे भिन्नरूप उसी
परमात्माका जो ज्ञान, वह सम्यग्ज्ञान और उसीमें निश्चल चित्तकी वृत्ति वह सम्यक्चारित्र, यह
निश्चयरत्नत्रयरूप जो शुद्धात्माकी रुचि जिसके नहीं, ऐसा मूढ़जन आत्मा को नहीं जानता हुआ,
और नहीं अनुभवता हुआ जगत्के समस्त भोगोंको धर्मके बहानेसे लेना चाहता है, तथा ज्ञानीजन
समस्त भोगोंसे उदास है, जो विद्यमान भोग थे, वे सब छोड़ दिये और आगामी वाँछा नहीं
है, ऐसा जानना ।।८७।।
आगे शिष्योंका करना, पुस्तकादिका संग्रह करना, इन बातोंसे अज्ञानी प्रसन्न होता है,
और ज्ञानीजन इनको बंधके कारण जानता हुआ इनसे रागभाव नहीं करता, इनके संग्रहमें
लज्जावान् होता है —