Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
৩৬৪ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-২ : দোহা-৮৮
शिष्यार्जिकापुस्तकैः तुष्यति मूढो निर्भ्रान्तः
एतैः लज्जते ज्ञानी बन्धस्य हेतुं जानन् ।।८८।।
शिष्यार्जिकादीक्षादानेन पुस्तकप्रभृत्युपकरणैश्च तुष्यति संतोषं करोति कोऽसौ मूढः
कथंभूतः निर्भ्रान्तः एतैर्बहिर्द्रव्यैर्लज्जां करोति कोऽसौ ज्ञानी किं कुर्वन्नपि पुण्यबन्धहेतुं
जानन्नपि तथा च पूर्वसूत्रोक्त सम्यग्दर्शनचारित्रलक्षणं निजशुद्धात्मस्वभावश्रद्धानो विशिष्टभेद-
ज्ञानेनाजानंश्च तथैव वीतरागचारित्रेणाभावयंश्च मूढात्मा किं करोति पुण्यबन्धकारणमपि
जिनदीक्षादानादिशुभानुष्ठानं पुस्तकाद्युपकरणं वा मुक्ति कारणं मन्यते ज्ञानी तु यद्यपि
साक्षात्पुण्यबन्धकारणं मन्यते परंपरया मुक्ति कारणं च तथापि निश्चयेन मुक्ति कारणं न मन्यते
इति तात्पर्यम्
।।८८।।
ভাবার্থ:পূর্বসূত্রমাং কহেলা সম্যগ্দর্শন, সম্যগ্জ্ঞান অনে সম্যক্চারিত্রস্বরূপ
নিজশুদ্ধআত্মস্বভাবনে নহি. শ্রদ্ধতো, বিশিষ্ট ভেদজ্ঞানথী নহি জাণতো তেম জ
বীতরাগচারিত্রথী নহি ভাবতো, মূঢাত্মা জিনদীক্ষা আপবী বগেরে শুভ অনুষ্ঠাননে অনে
পুস্তক বগেরে উপকরণনে পুণ্যবংধনুং কারণ অনে পরংপরাএ মুক্তিনুং কারণ মানে ছে. জ্ঞানী
সাক্ষাত্ পুণ্যবংধনুং কারণ অনে পরংপরাএ মুক্তিনুং কারণ মানতা হোবা ছতাং পণ নিশ্চযথী
তেমনে মুক্তিনুং কারণ মানতা নথী. ৮৮.
गाथा८८
अन्वयार्थ :[मूढः ] अज्ञानीजन [शिष्यार्जिकापुस्तकैः ] चेला चेली पुस्तकादिकसे
[तुष्यति ] हर्षित होता है, [निर्भ्रान्तः ] इसमें कुछ संदेह नहीं है, [ज्ञानी ] और ज्ञानीजन
[एतैः ] इन बाह्य पदार्थोंसे [लज्जते ] शरमाता है, क्योंकि इन सबोंको [बंधस्य हेतुं ] बंधका
कारण [जानन् ] जानता है
भावार्थ :सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्ररूप जो निज शुद्धात्मा उसको न
श्रद्धान करता, न जानता और न अनुभव करता जो मूढ़ात्मा वह पुण्यबंधके कारण जिनदीक्षा
दानादि शुभ आचरण और पुस्तकादि उपकरण उनको मुक्तिके कारण मानता है, और ज्ञानीजन
इनको साक्षात् पुण्यबंधके कारण जानता है, परम्पराय मुक्तिके कारण मानता है
यद्यपि
व्यवहारनयकर बाह्य सामग्रीको धर्मका साधन जानता है, तो भी ऐसा मानता है कि निश्चयनयसे
मुक्तिके कारण नहीं हैं
।।८८।।