Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
बाह्यवीर्याचार इति अयं तु व्यवहारपञ्चाचारः पारंपर्येण साधक इति विशुद्धज्ञानदर्शनस्वभाव-
शुद्धात्मतत्त्वसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुष्ठानबहिर्द्रव्येच्छानिवृत्तिरूपं तपश्चरणं स्वशक्त्यनवगूहन-
वीर्यरूपाभेदपञ्चाचाररूपात्मकं शुद्धोपयोगभावनान्तर्भूतं वीतरागनिर्विकल्पसमाधिं
स्वयमाचरन्त्यन्यानाचारयन्तीति भवन्त्याचार्यास्तानहं वन्दे
पञ्चास्तिकायषड्द्रव्यसप्ततत्त्व-
नवपदार्थेषु मध्ये शुद्धजीवास्तिकायशुद्धजीवद्रव्यशुद्धजीवतत्त्वशुद्धजीवपदार्थसंज्ञं स्वशुद्धात्म-
भावमुपादेयं तस्माच्चान्यद्धेयं कथयन्ति, शुद्धात्मस्वभावसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुचरणरूपाभेद-
रत्नत्रयात्मकं निश्चयमोक्षमार्गं च ये कथयन्ति ते भवन्त्युपाध्यायास्तानहं वन्दे
शुद्धबुद्धैक-
स्वभावशुद्धात्मतत्त्वसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुचरणतपश्चरणरूपाभेदचतुर्विधनिश्चयाराधनात्मकवीतराग-
ইচ্ছানী নিবৃত্তিরূপ তপশ্চরণ, স্বশক্তিনে ন গোপববারূপ বীর্যএ রূপ অভেদ পংচাচারাত্মক
শুদ্ধোপযোগভাবনামাং অন্তর্ভূত এবী বীতরাগনির্বিকল্পসমাধিনে জেও স্বযং আচরে ছে, অনে
অন্যোনে অচরাবে ছে তেও আচার্যো ছে, তেমনে হুং নমস্কার করুং ছুং.
পংচাস্তিকায, ছ দ্রব্য, সাততত্ত্ব, নব পদার্থো ছে, তেমাং শুদ্ধ জীবাস্তিকায, শুদ্ধ জীবদ্রব্য,
শুদ্ধ জীবতত্ত্ব, শুদ্ধ জীবপদার্থ এবা সংজ্ঞাধারক স্বশুদ্ধাত্মভাব (স্বশুদ্ধাত্মপদার্থ) উপাদেয ছে,
তেনাথী জে অন্য ছে তে হেয ছে, এবো উপদেশ জেও করে ছে অনে শুদ্ধ আত্মস্বভাবনাং সম্যক্-
শ্রদ্ধান, সম্যগ্জ্ঞান অনে সম্যক্আচরণরূপ অভেদ রত্নত্রযাত্মক নিশ্চয মোক্ষমার্গনে জেও কহে
ছে তেও উপাধ্যাযো ছে, তেমনে হুং বংদন করুং ছুং.
শুদ্ধ, বুদ্ধ জেনো এক স্বভাব ছে এবা শুদ্ধ আত্মতত্ত্বনাং সম্যক্শ্রদ্ধান, সম্যগ্জ্ঞান,
অনে সম্যক্আচরণ, তপশ্চরণরূপ অভেদ চতুর্বিধ নিশ্চয-আরাধনাত্মক বীতরাগ-
অধিকার-১ : দোহা-৭ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ২৫
पंचाचार साक्षात् मुक्तिका कारण है ऐसे निश्चय व्यवहाररूप पंचाचारोंको आप आचरें और
दूसरोंको आचरवावें ऐसे आचार्योंको मैं वंदता हूँ पंचास्तिकाय, षट् द्रव्य, सप्त तत्त्व, नवपदार्थ
हैं, उनमें निज शुद्ध जीवास्तिकाय, निजशुद्ध जीवद्रव्य, निजशुद्ध जीवतत्त्व, निज शुद्ध
जीवपदार्थ, जो आप शुद्धात्मा है, वही उपादेय (ग्रहण करने योग्य) है, अन्य सब त्यागने योग्य
हैं, ऐसा उपदेश करते हैं, तथा शुद्धात्मस्वभावका सम्यक्श्रद्धान-ज्ञान-आचरणरूप अभेद
रत्नत्रय है, वही निश्चयमोक्षमार्ग है, ऐसा उपदेश शिष्योंको देते हैं, ऐसे उपाध्यायोंको मैं नमस्कार
करता हूँ, और शुद्धज्ञान स्वभाव शुद्धात्मतत्त्वकी आराधनारूप वीतराग
निर्विकल्प समाधिको
जो साधते हैं, उन साधुओंको मैं वंदता हूँ वीतराग निर्विकल्प समाधिको जो आचरते हैं, कहते
१. वे पाँचों परमेष्ठी भी जिस वीतरागनिर्विकल्पसमाधिको आचरते हैं, कहते हैं और साधते हैं; तथा जो
उपादेयरूप निजशुद्धात्मतत्त्वकी साधनेवाली है, ऐसी निर्विकल्प समाधिको ही उपादेय जानो (यह
अर्थ संस्कृतके अनुसार किया गया है )