Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
৪১২ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-২ : দোহা-১১৭
ভাবার্থ: — অহীং বীতরাগ চিদানংদ জ জেনো এক স্বভাব ছে এবা পরমাত্মতত্ত্বনে
নহি সেবতা, নহি জাণতা অনে বীতরাগ নির্বিকল্প সমাধিনা বল বডে নিশ্চল চিত্তথী নহি
ভাবতা জীবো মিথ্যামার্গমাং রুচি করতা থকা, পংচেন্দ্রিয বিষযোমাং আসক্ত থতাং, নরনারকাদি
গতিওমাং ঘাণীমাং পিলাবুং, করবতথী কপাবুং অনে শূলীএ চডবুং বগেরে অনেক প্রকারনা দুঃখ সহন
করে ছে. এ ভাবার্থ ছে. ১১৬.
আ বিষযমাং কহ্যুং পণ ছে কে : —
जलसिंचनं पादनिर्दलनं पुनः पुनः पीडनदुखं स्नेहनिमित्तं तिलनिकरं यन्त्रेण सहमानं
पश्येति । अत्रवीतरागचिदानन्दैकस्वभावं परमात्मतत्त्वमसेवमाना अजानन्तो वीतरागनिर्विकल्प-
समाधिबलेन निश्चलचित्तेनाभावयन्तश्च जीवा मिथ्यामार्गं रोचमानाः पञ्चेन्द्रियविषयासक्त ाः
सन्तो नरनारकादिगतिषु यन्त्रपीडनक्रकचविदारणशूलारोहणादि नानादुःखं सहन्त इति
भावार्थः ।।११६।।
उक्तं च —
२४७) ते चिय धण्णा ते चिय सप्पुरिसा ते जियंतु जिय-लोए ।
वोद्दह-दहम्मि पडिया तरंति जे चेव लीलाए ।।११७।।
ते चैव धन्याः ते चैव सत्पुरुषाः ते जीवन्तु जीवलोके ।
यौवनद्रहे पतिताः तरन्ति ये चैव लीलया ।।११७।।
के सम्बन्धसे [जलसिंचनं ] जलसे भीगना, [पादनिर्दलनं ] पैरोंसे खुँदना, [यंत्रेण ] घानीमें
[पुनः पुनः ] बार बार [पीडनदुःखम् ] पिलनेका दुख [सहमानं ] सहता है, उसे [पश्य ] देखो ।
भावार्थ : — जैसे स्नेह (चिकनाई तेल) के सम्बन्ध होनेसे तिल घानीमें पेले जाते हैं,
उसी तरह जो पंचेन्द्रियके विषयोंमें आसक्त हैं — मोहित हैं वे नाशको प्राप्त होते हैं, इसमें कुछ
संदेह नहीं है ।।११६।।
इस विषयमें कहा भी है —
गाथा – ११७
अन्वयार्थ : — [ते चैव धन्याः ] वे ही धन्य हैं, [ते चैव सत्पुरुषाः ] वे ही सज्जन
हैं, और [ते ] वे ही जीव [जीवलोके ] इस जीवलोकमें [जीवंतु ] जीवते हैं, [ये चैव ] जो
[यौवनद्रहे ] जवान अवस्थारूपी बड़े भारी तालाबमें [पतिताः ] पड़े हुए विषय – रसमें नहीं
डूबते, [लीलया ] लीला (खेल) मात्रमें ही [तरंति ] तैर जाते हैं । वे ही प्रशंसा योग्य है ।