Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration). Gatha-118 (Adhikar 2).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-১১৮ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৪১৩
ভাবার্থ:অহীং বিষযোনী আকাংক্ষারূপ স্নেহরূপী জলমাং প্রবেশথী রহিত, সম্যগ্-
দর্শন, সম্যগ্জ্ঞান অনে সম্যক্চারিত্ররূপ অমূল্য রত্নোনা দাবডাথী পূর্ণ এবা নিজশুদ্ধাত্ম-
ভাবনারূপ জহাজথী যৌবনরূপী মহাসরোবরনে জেও তরী জায ছে তেও জ ধন্য ছে, তেও জ
সত্পুরুষো ছে. ১১৭.
হবে, বহু বিস্তারথী শুং প্রযোজন ছে?
ते चैव धन्यास्ते चैव सत्पुरुषास्ते जीवन्तु जीवलोके ते के वोद्दहशब्देन यौवनं स
एव द्रहो महाहृदस्तत्र पतिताः सन्तस्तरन्ति ये चैव कया लीलयेति अत्र विषयाकांक्षा-
रूपस्नेहजलप्रवेशरहितेन सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रामूल्यरत्नभाण्डपूर्णेन निजशुद्धात्मभावनापोतेन
यौवनमहाहृदं ये तरन्ति त एव धन्यास्त एव सत्पुरुषा इति तात्पर्यम्
।।११७।।
किं बहुना विस्तरेण
२४८) मोक्खु जि साहिउ जिणवरहिँ छंडिवि बहु-विहु रज्जु
भिक्ख-भरोडा जीव तुहुँ करहि ण अप्पउ कज्जु ।।११८।।
मोक्षः एव साधितः जिनवरैः त्यक्त्वा बहुविधं राज्यम्
भिक्षाभोजन जीव त्वं करोषि न आत्मीयं कार्यम् ।।११८।।
मोक्खु जि इत्यादि पदखण्डनारूपेण व्याख्यानं क्रियते मोक्खु जि साहिउ मोक्षएव
भावार्थ :यहाँ विषयवांछारूप जो स्नेहजल उसके प्रवेशसे रहित जो सम्यग्दर्शन
ज्ञान चारित्ररूपी रत्नोंसे भरा निज शुद्धात्मभावनारूपी जहाज उससे यौवन अवस्थारूपी महान्
तालाबको तैर जाते हैं, वे ही सत्पुरुष हैं, वे ही धन्य हैं, यह सारांश जानना, बहुत विस्तारसे
क्या लाभ है
।।११७।।
आगे मोक्षका कारण वैराग्यको दृढ़ करते हैं
गाथा११८
अन्वयार्थ :[जिनवरैः ] जिनेश्वरदेवने [बहुविधं ] अनेक प्रकारका [राज्यम् ]
राज्यका विभव [त्यक्त्वा ] छोड़कर [मोक्ष एव ] मोक्षको ही [साधितः ] साधन किया, परंतु
[जीव ] हे जीव, [भिक्षाभोजन ] भिक्षासे भोजन करनेवाला [त्वं ] तू [आत्मीयं कार्यम् ] अपने
आत्मा का कल्याण भी [न करोषि ] नहीं करता
भावार्थ :समस्त कर्ममलकलंकसे रहित जो आत्मा उसके स्वाभाविक ज्ञानादि