Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration). Gatha-138 (Adhikar 2) Indriyasukhanu Anityapanu.

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-১৩৮ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৪৪৫
যোগ শব্দনো অর্থ কহেবামাং আবে ছে :‘युज्’ অর্থাত্ সমাধিমাং চিত্তনে জোডবুং. এবা
সমাধিনা অর্থবালা ধাতুথী নিষ্পন্ন যোগশব্দথী বীতরাগনির্বিকল্প সমাধি কহেবায ছে অথবা
অনংতজ্ঞানাদিরূপ স্বশুদ্ধাত্মামাং জোডাবুং
পরিণমবুং তে পণ যোগ ছে. আবো যোগ জেনে ছে তে যোগী
-ধ্যানী-তপোধন ছে. এ প্রমাণে অর্থ ছে. ১৩৭৫.
হবে, পাংচ ইন্দ্রিযসুখনুং অনিত্যপণুং দর্শাবে ছে :
ভাবার্থ:নির্বিষয নিত্য অনে বীতরাগ পরমানংদ জেনো এক স্বভাব ছে এবা
পরমাত্মসুখথী প্রতিকূল বিষযসুখো বে দিবস রহেনারাং ছে. পছী-বে দিবস পছী-আত্মসুখথী
तात्पर्यम् योगशब्दस्यार्थं कथ्यते‘युज्’ समाधौ इति धातुनिष्पन्नेन योगशब्देन
वीतरागनिर्विकल्पसमाधिरुच्यते अथवानन्तज्ञानादिरूपे स्वशुद्धात्मनि योजनं परिणमनं योगः, स
इत्थंभूतो योगो यस्यास्तीति स तु योगी ध्यानी तपोधन इत्यर्थः ।।१३७।।
अथ पञ्चेन्द्रियसुखस्यानित्यत्वं दर्शयति
२६९) विसय-सुहइँ बे दिवहडा पुणु दुक्खहँ परिवाडि
भुल्लउ जीव म वाहि तुहुँ अप्पण खंधि कुहाडि ।।१३८।।
विषयसुखानि द्वे दिवसे पुनः दुःखानां परिपाटी
भ्रान्त जीव मा वाहय त्वं आत्मनः स्कन्धे कुठारम् ।।१३८।।
विसय इत्यादि विसय-सुहइं निर्विषयान्नित्याद्वीतरागपरमानन्दैकस्वभावात् परमात्म-
सुखात्प्रतिकूलानि विषयसुखानि बे दिबहडा दिनद्वयस्थायीनि भवन्ति पुणु पुनः
है, वही तपोधन है, वह निःसंदेह जानना ।।१३७।।
आगे पंचेन्द्रियोंके सुखको विनाशीक बतलाते हैं
गाथा१३८
अन्वयार्थ :[विषयसुखानि ] विषयोंके सुख [द्वे दिवसे ] दौ दिनके हैं, [पुनः ]
फि र बादमें [दुःखानां परिपाटी ] ये विषय दुःखकी परिपाटी हैं, ऐसा जानकर [भ्रांत जीव ]
हे भोले जीव, [त्वं ] तू [आत्मनः स्कंधे ] अपने कंधे पर [कुठारम् ] आपही कुल्हाड़ीको
[मा वाहय ] मत चलावे
।।
भावार्थ :ये विषय क्षणभंगुर हैं, बारम्बार दुर्गतिके दुःखके देनेवाले हैं, इसलिए
विषयोंका सेवन अपने कंधे पर कुल्हाड़ीका मारना है, अर्थात् नरकमें अपनेको डुबोना है, ऐसा