Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
৪৫০ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-২ : দোহা-১৪১
পণ প্রকারে, গমে তে উপাযে) মনোজয করবো জোঈএ (মননে জীতবুং জোঈএ) তে করতাং
(মননে জীতবাথী তে) জিতেন্দ্রিয থবায ছে. বলী, কহ্যুং ছে কে ‘‘येनोपायेन शक्यते सन्नियन्तुं
चलं मनः । स एवोपासनीयोऽत्र न चैव विरमेत्ततः ।।’’ (অর্থ: — জে উপাযথী চংচল মন
সংযমিত করী শকায তে উপায অত্রে উপাস্যা জ করবো পণ এম করতাং অটকবুং নহি (তে
উপায মূকী দেবো নহি.) ১৪০.
হবে, হে জীব! তুং বিষযাসক্ত থঈনে কেটলো কাল গালীশ? এম সংবোধে ছে : —
ভাবার্থ: — হে অজ্ঞানী জীব! তুং শুদ্ধাত্মভাবনাথী উত্পন্ন বীতরাগ পরমানংদ ঝরতা
जितेन्द्रियो भवति । तथा चोक्त म् — ‘‘येनोपायेन शक्येत सन्नियन्तुं चलं मनः । स
एवोपासनीयोऽत्र न चैव विरमेत्ततः ।।’’ ।।१४०।।
अथ हे जीव विषयासक्त : सन् कियन्तं कालं गमिष्यसीति संबोधयति —
२७२) विसयासत्तउ जीव तुहुँ कित्तिउ कालु गमीसि ।
सिव-संगमु करि णिच्चलउ अवसइँ मुक्खु लहीसि ।।१४१।।
विषयासक्त : जीव त्वं कियन्तं कालं गमिष्यसि ।
शिवसंगमं कुरु निश्चलं अवश्यं मोक्षं लभसे ।।१४१।।
विसय इत्यादि । विसयासत्तउ शुद्धात्मभावनोत्पन्नवीतरागपरमानन्दस्यन्दिपारमार्थिक-
सुखानुभवरहितत्वेन विषयासक्त ो भूत्वा जीव हे अज्ञानिजीव तुहुं त्वं कित्तिउ कालु गमीसि
उस उपायसे उदास नहीं होना । जगत् से उदास और मन जीतनेका उपाय करना ।।१४०।।
आगे जीवको उपदेश देते हैं, कि हे जीव, तू विषयोंमें लीन होकर अनंतकालतक
भटका, और अब भी विषयासक्त है, सो विषयासक्त हुआ कितने कालतक भटकेगा, अब
तो मोक्षका साधन कर, ऐसा संबोधन करते हैं —
गाथा – १४१
अन्वयार्थ : — [जीव ] हे अज्ञानी जीव, [त्वं ] तू [विषयासक्तः ] विषयोंमें आसक्त
होके [कियंतं कालं ] कितना काल [गमिष्यसि ] बितायेगा [शिवसंगमं ] अब तो शुद्धात्माका
अनुभव [निश्चलं ] निश्चलरूप [कुरु ] कर, जिससे कि [अवश्यं ] अवश्य [मोक्षं ] मोक्षको
[लभसे ] पावेगा ।
भावार्थ : — हे अज्ञानी, तू शुद्धात्माकी भावनासे उत्पन्न वीतराग परम आनंदरूप