Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
৪৮৬ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-২ : দোহা-১৬৪
लोयालोयपमाणु लोकालोकप्रमाणं लोकालोकव्याप्तिरूपं अथवा प्रसिद्धलोकालोकाकाशे
व्यवहारेण ज्ञानापेक्षया न च प्रदेशापेक्षया लोकालोकप्रमाणं मनो १
मानसं धरति तुट्टइ मोहु
तडत्ति तसु त्रुटयति नश्यति । कोऽसौ । मोहु मोहः । कथम् । झटिति तस्य ध्यानात् । न
केवलं मोहो नश्यति । पावइ प्राप्नोति । किम् । परहं पवाणु परस्य परमात्मस्वरूपस्य
प्रमाणम् । कीद्रशं तत्प्रमाणमिति चेत् । व्यवहारेण रूपग्रहणविषये चक्षुरिव सर्वगतः । यदि
पुनर्निश्चयेन सर्वगतो भवति तर्हि चक्षुणो २अग्निस्पर्शात्दाहः प्राप्नोति न च तथा ।
तथात्मनोऽपि परकीयसुखदुःखविषये तन्मयपरिणामत्वेन परकीयसुखदुःखानुभवं प्राप्नोति न च
লোকালোকব্যাপ্তিরূপ লোকালোক প্রমাণ অথবা ব্যবহারনযথী প্রসিদ্ধ লোকালোকাকাশমাং জ্ঞান-
অপেক্ষাএ ব্যাপ্ত পণ প্রদেশনী অপেক্ষাএ ব্যাপ্ত নহি এবা মননে জে ধ্যাতা পুরুষ স্থির করে
ছে তেনো মোহ শীঘ্র তেনা ধ্যানথী নাশ পামে ছে. মাত্র মোহ নাশ পামে ছে এটলুং জ নহি পণ
পরমাত্মস্বরূপনুং প্রমাণ পণ পামে ছে.
প্রশ্নন : — কেটলুং তে প্রমাণ ছে?
উত্তর : — ব্যবহারথী জেম চক্ষু রূপগ্রহণনী বাবতমাং সর্বগত ছে তেম তে সর্বগত ছে
পণ জো নিশ্চযথী সর্বগত হোয তো চক্ষুনে অগ্নিনা স্পর্শনী বলতরা থায, পণ তেম থতুং নথী,
তেবী রীতে জো আত্মা নিশ্চযথী সর্বগত হোয তো পরকীয সুখদুঃখমাং আত্মানা তন্ময পরিণাম
হোবাথী পরনা সুখ-দুঃখনো অনুভব প্রাপ্ত থায, পণ তেম থতুং নথী. (তেথী ব্যবহারথী জ্ঞান-
অপেক্ষাএ আত্মানে সর্বগতপণুং ছে, প্রদেশ-অপেক্ষাএ নহি.)
বলী, নিশ্চযনযথী আত্মা লোকপ্রমাণ অসংখ্যাত প্রদেশবালো হোবা ছতাং পণ
ज्ञान लोकालोकका प्रकाशक है, और निश्चयनयकर अपने स्वरूपका प्रकाशक है । आत्माका
केवलज्ञान लोकालोकको जानता है, इसी कारण ज्ञानकी अपेक्षा लोकालोकप्रमाण कहा जाता
है, प्रदेशोंकी अपेक्षा लोकालोकप्रमाण नहीं है । ज्ञानगुण लोकालोकमें व्याप्त है; परन्तु परद्रव्योंसे
भिन्न है । परवस्तुसे जो तन्मयी हो जावे, तो वस्तुका अभाव हो जावे । इसलिए यह निश्चय
हुआ, कि ज्ञान गुणक र लोकालोकप्रमाण जो आत्मा उसे आकाश भी कहते हैं, उसमें जो मन
लगावे, तब जगत्से मोह दूर हो और परमात्माको पावे । व्यवहारनयकर आत्मा ज्ञानकर सबको
जानता है, इसलिए सब जगत्में हैं । जैसे व्यवहारनयकर नेत्र रूपी पदार्थको जानता है; परन्तु
उन पदार्थोंसे भिन्न है । जो निश्चयकर सर्वगत होवे, तो परपदार्थोंसे तन्मयी हो जावे, जो उसे
तन्मयी होवे तो नेत्रोंको अग्निका दाह होना चाहिए, इस कारण तन्मयी नहीं है । उसी प्रकार
১ পাঠান্তর : — मानसं = मानसं ज्ञानं
২. পাঠান্তর : — अग्निस्पर्शात् दाहः = अग्निस्पर्शदाह