व्याख्यान अर्थे अधिकारनी शुद्धि [परिपाटी] कहेवामां आवे छे. ते आ प्रमाणे – (१) प्रथम
ज पंचपरमेष्ठीना नमस्कारनी मुख्यताथी ‘‘जे जाया झाणग्गियए’’ इत्यादि सात दोहक सूत्रो छे,
(२) त्यारपछी विज्ञापननी मुख्यताथी ‘‘भाविं पणविवि’’ इत्यादि त्रण सूत्रो छे, (३) त्यार-
पछी बहिरात्मा, अन्तरात्मा, परमात्मा ए भेदोथी त्रण प्रकारना आत्माना कथननी मुख्यताथी
‘‘-पुणु पुणु पणविवि’’ इत्यादि पांच सूत्रो छे, (४) त्यारपछी मुक्तिने प्राप्त थयेला व्यक्तिरूप
परमात्माना कथननी मुख्यताथी ‘‘तिहुयणवंदिउ’’ इत्यादि दस सूत्रो छे, (५) त्यारपछी देहमां
रहेला शक्तिरूप परमात्माना कथननी मुख्यताथी ‘‘जेहउ णिम्मलु’’ इत्यादि पांच अन्तर्भूत
प्रक्षेपको सहित चोवीस सूत्रो छे, (६) पछी जीवना निजदेहप्रमाणना विषयमां स्वमत, परमतना
विचारनी मुख्यताथी ‘‘किं वि भणंति जिउ सव्वगउ’’ इत्यादि छ सूत्रो छे, (७) त्यारपछी
व्याख्यानार्थमधिकारशुद्धिः कथ्यते । तद्यथा — प्रथमतस्तावत्पञ्चपरमेष्ठिनमस्कारमुख्यत्वेन ‘जे
जाया झाणग्गियए’ इत्यादि सप्त दोहकसूत्राणि भवन्ति, तदनन्तरं विज्ञापनमुख्यतया ‘भाविं
पणविवि’ इत्यादिसूत्रत्रयम्, अत ऊर्ध्वं बहिरन्तःपरमभेदेन त्रिधात्मप्रतिपादनमुख्यत्वेन ‘पुणु पुणु
पणविवि’ इत्यादिसूत्रपञ्चकम्, अथानन्तरं मुक्ति गतव्यक्ति रूपपरमात्मकथनमुख्यत्वेन
‘तिहुयणवंदिउ’ इत्यादि सूत्रदशक म्, अत ऊर्ध्वं देहस्थितशक्ति रूपपरमात्मकथनमुख्यत्वेन ‘जेहउ
णिम्मुलु’ इत्यादि अन्तर्भूतप्रक्षेपपञ्चकसहितचतुर्विंशतिसूत्राणि भवन्ति, अथ जीवस्य
स्वदेहप्रमितिविषये स्वपरमतविचारमुख्यतया ‘किं वि भणंति जिउ सव्वगउ’ इत्यादिसूत्रषट्कं,
२ ]
योगीन्दुदेवविरचितः
[ पातनिका
चिदानंदचिद्रूप है, उनके लिये मेरा सदाकाल नमस्कार होवे, किस लिये ? परमात्माके स्वरूपके
प्रकाशनेके लिये । कैसे हैं वे भगवान् ? शुद्ध परमात्मस्वरूपके प्रकाशक हैं, अर्थात् निज और
पर सबके स्वरूपको प्रकाशते हैं । फि र कैसे हैं ? ‘सिद्धात्मने’ जिनका आत्मा कृतकृत्य है ।
सारांश यह है कि नमस्कार करने योग्य परमात्मा ही है, इसलिये परमात्माको नमस्कार कर
परमात्मप्रकाशनामा ग्रंथका व्याख्यान करता हूँ ।
श्रीयोगीन्द्रदेवकृत परमात्मप्रकाश नामा दोहक छंद ग्रंथमें प्रक्षेपक दोहोंको छोड़कर
व्याख्यानके लिये अधिकारोंकी परिपाटी कहते हैं — प्रथम ही पंच परमेष्ठीके नमस्कारकी
मुख्यताकर ‘जे जाया झाणग्गियए’ इत्यादि सात दोहे जानना, विज्ञापना की मुख्यताकर ‘भाविं
पणविवि’ इत्यादि तीन दोहे, बहिरात्मा, अंतरात्मा, परमात्मा, इन भेदोंसे तीन प्रकार आत्माके
कथनकी मुख्यताकर ‘पुणु पुणु पणविवि’ इत्यादि पाँच दोहे, मुक्तिको प्राप्त हुए जो प्रगटस्वरूप
परमात्मा उनके कथनकी मुख्यताकर ‘तिहुयण वंदिउ’ इत्यादि दस दोहे, देहमें तिष्ठे हुए शक्तिरूप
परमात्माके कथनकी मुख्यतासे ‘जेहउ णिम्मलु’ इत्यादि पाँच क्षेपकों सहित चौवीस दोहे, जीवके
निजदेह प्रमाण कथनमें स्वमत-परमतके विचारकी मुख्यताकर ‘कि वि भणंति जिउ सव्वगउ’