Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration).

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योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-१ः दोहा-१२१
वसतीति क्रियाध्याहारः, तसु तस्य णवि नैवास्ति कोऽसौ बंभु ब्रह्मशब्दवाच्यो
निजपरमात्मा वियारी एवं विचारय त्वं हे प्रभाकरभट्ट अत्रार्थे द्रष्टांतमाह एक्कहिं केम
एकस्मिन् कथं समंति सम्यग्मिमाते सम्यगवकाशं कथं लभेते वढ बत बे खंडा द्वो
खड्गौ असी
क्वाधिकरणभूते पडियारी प्रतिकारे (?) कोशशब्दवाच्ये इति तथाहि
वीतरागनिर्विकल्पपरमसमाधिसंजातानाकुलत्वलक्षणपरमानन्दसुखामृतप्रतिबन्धकैराकुलत्वोत्पादकैः
स्त्रीरूपावलोकनचिन्तादिसमुत्पन्नहावभावविभ्रमविलासविकल्पजालैर्मूर्च्छिते वासिते रञ्जिते परिणते
चित्ते त्वेकस्मिन् प्रतिहारे (?) खड्गद्वयवत्परमब्रह्मशब्दवाच्यनिजशुद्धात्मा कथमवकाशं लभते
न कथमपीति भावार्थः
हावभावविभ्रमविलासलक्षणं कथ्यते ‘‘हावो मुखविकारः
स्याद्भावश्चित्तोत्थ उच्यते विलासो नेत्रजो ज्ञेयो विभ्रमो भ्रूयुगान्तयोः ।।’’ ।।१२१।।
अतीन्द्रिय-सुखरूप अमृत है, उसके रोकनेवाले तथा आकुलताको उत्पन्न करनेवाले जो
स्त्रीरूपके देखनेकी अभिलाषादिसे उत्पन्न हुए हाव (सुख-विकार) भाव अर्थात् चित्तका
विकार, विभ्रम अर्थात् मुँहका टेढ़ा करना, विलास अर्थात् नेत्रोंके कटाक्ष इन स्वरूप
विकल्पजालोंकर, मूर्छित रंजित परिणाम चित्तमें ब्रह्मका (निज शुद्धात्माका) रहना कैसे
हो सकता है ? जैसे कि एक म्यानमें दो तलवारें कैसे आ सकती हैं ? नहीं आ सकतीं
उसी तरह एक चित्तमें ब्रह्म-विद्या और विषय-विनोद ये दोनों नहीं समा सकते जहाँ
ब्रह्म-विचार हे, वहाँ विषय-विकार नहीं है, जहाँ विषय-विकार हैं वहाँ ब्रह्म-विचार नहीं
है
इन दोनोंमें आपसमें विरोध है हाव भाव विभ्रम विलास इन चारोंका लक्षण दूसरी
जगह भी कहा है ‘‘हावो मुखविकारः’’ इत्यादि, उसका अर्थ ऊ पर कर चुके हैं, इससे
दूसरी बार नहीं करा ।।१२१।।
एवा परमानंदरूप जे सुखामृतने प्रतिबंधक, आकुळताना उत्पादक एवा स्त्रीरूपने देखवानी
अभिलाषाथी उत्पन्न हाव, भाव, विभ्रम, विलासना विकल्पजाळथी मूर्छित-वासित-रंजित
-परिणत-चित्तमां, एक म्यानमां बे तलवार न समाय तेनी जेम, ‘ब्रह्म’ शब्दथी वाच्य एवो
निजशुद्धात्मा केवी रीते अवकाश मेळवे? ए भावार्थ छे. (अर्थात् न मेळवे.)
हाव, भाव, विभ्रम, विलासनुं स्वरूप कहे छे.
‘‘हावो मुखविकारः स्याद्भावश्चित्तोत्थ उच्यते विलासो नेत्रजो ज्ञेयो विभ्रमो भ्रूयुगान्तयोः ।।’’
(अर्थमुखविकार ते हाव छे, चित्तविकार ते भाव छे, नेत्रनो विकार ते विलास छे, बन्ने
भम्मरना छेडानो विकार ते विभ्रम छे.) १२१.