उत्तमु इत्यादि । उत्तमु उत्तमं सुक्खु सुखं ण देइ जइ न ददाति यदि चेत् उत्तमु
मुक्खु ण होइ उत्तमो मोक्षो न भवति तो तस्मात्कारणात् किं किमर्थं इच्छहिँ इच्छन्ति
बंधणहिँ बन्धनैः बद्धा निबद्धाः । पसुय वि पशवोऽपि । किमिच्छन्ति । सोइ तमेव मोक्षमिति ।
अयमत्र भावार्थः । येन कारणेन सुखकारणत्वाद्धेतोः बन्धनबद्धाः पशवोऽपि मोक्षमिच्छन्ति तेन
कारणेन केवलज्ञानाद्यनन्तगुणाविनाभूतस्योपादेयरूपस्यानन्तसुखस्य कारणत्वादिति ज्ञानिनो
विशेषेण मोक्षमिच्छन्ति ।।५।।
अथ यदि तस्य मोक्षस्याधिकगुणगणो न भवति तर्हि लोको निजमस्तकस्योपरि तं
किमर्थं धरतीति निरूपयति —
१३२) अणु जइ जगहँ वि अहिययरु गुण-गणु तासु ण होइ ।
तो तइलोउ वि किं धरइ णिय-सिर-उप्परि सोइ ।।६।।
न देवे तो [उत्तमः ] उत्तम [न भवति ] नहीं होवे और जो मोक्ष उत्तम ही न होवे [ततः ]
तो [बंधनैः बद्धाः ] बंधनोंसे बंधे [पशवोऽपि ] पशु भी [तमेव ] उस मोक्ष की ही [किं
इच्छंति ] क्यों इच्छा करें ? ।
भावार्थ : — बँधने के समान कोई दुःख नहीं है, और छूटने के समान कोई सुख नहीं
है, बंधनसे बँधे जानवर भी छूटना चाहते हैं, और जब वे छूटते हैं, तब सुखी होते हैं । इस
सामान्य बंधनके अभावसे ही पशु सुखी होते हैं, तो कर्म – बंधनके अभावसे ज्ञानीजन परमसुखी
होवें, इसमें अचम्भा क्या है । इसलिये केवलज्ञानादि अनंत गुणसे तन्मयी अनन्त सुखका कारण
मोक्ष ही आदरने योग्य है, इस कारण ज्ञानी पुरुष विशेषतासे मोक्षको ही इच्छते हैं ।।५।।
आगे बतलाते हैं — जो मोक्षमें अधिक गुणोंका समूह नहीं होता, तो मोक्षको तीन लोक
अपने मस्तक पर क्यों रखता ?
भावार्थः — मोक्ष ते सुखनुं कारण छे एवा हेतुथी बंधनथी बंधायेल पशुओ पण मोक्षने
(छूटकाराने) इच्छे छे, तेथी (एम समजाय छे के) मोक्ष केवळज्ञानादि अनंतगुणोनी साथे
अविनाभावी एवा, उपादेयरूप अनंतसुखनुं कारण छे; माटे ज्ञानीओ विशेषपणे मोक्षने इच्छे
छे. ५.
हवे, ते मोक्षमां अधिक गुणोनो समूह न होत तो त्रण लोक तेने पोताना मस्तक उपर
शा माटे राखे, एम कहे छेः —
अधिकार-२ः दोहा-६ ]परमात्मप्रकाशः [ २०७