Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration).

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जीवहं इत्यादि जीवहं जीवानां अथवा एकवचनपक्षे ‘जीवहो’ जीवस्य मोक्खहं हेउ
मोक्षस्य हेतुः कारणं व्यवहारनयेन भवतीति क्रियाध्याहारः कथंभूतम् वरु वरमुत्कृष्टम् किं
तत् दंसणु णाणु चरित्तु सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रत्रयम् ते पुणु तानि पुनः तिण्णि वि त्रीण्यपि
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि अप्पु आत्मानमभेदनयेन मुणि मन्यस्व जानीहि त्वं हे प्रभाकरभट्ट
णिच्छएं निश्चयनयेन एहउ वुत्तु एवमुक्तं भणितं तिष्ठतीति
इदमत्र तात्पर्यम्
भेदरत्नत्रयात्मको व्यवहारमोक्षमार्गः साधको भवति अभेद रत्नत्रयात्मकः पुनर्निश्चयमोक्षमार्गः
साध्यो भवति, एवं निश्चयव्यवहारमोक्षमार्गयोः साध्यसाधकभावो ज्ञातव्यः सुवर्णसुवर्णपाषाणवत्
इति
तथा चोक्त म्‘‘सम्मद्दंसणणाणं चरणं मोक्खस्स कारणं जाणे ववहारा णिच्छयदो
तत्तियमइओ णिओ अप्पा ।।’’ ।।१२।।
अथ निश्चयरत्नत्रयपरिणतो निजशुद्धात्मैव मोक्षमार्गो भवतीति प्रतिपादयति
[दर्शनं ज्ञानं चारित्रम् ] दर्शन ज्ञान और चारित्र हैं [तानि पुनः ] फि र वे [त्रीण्यपि ] तीनों
ही [निश्चयेन ] निश्चयकर [आत्मानं ] आत्माको ही [मन्यस्व ] जाने [एवं ] ऐसा [उक्तम् ]
श्री वीतरागदेवने कहा है, ऐसा हे प्रभाक रभट्ट; तू जान
भावार्थ :भेदरत्नत्रयरूप व्यवहारमोक्षमार्ग साधक है, और अभेदरत्नत्रयरूप
निश्चयमोक्षमार्ग साधने योग्य है इसप्रकार निश्चय व्यवहारमोक्षमार्गका साध्य
साधकभाव, सुवर्ण सुवर्णपाषाणकी तरह जानना ऐसा ही कथन श्रीद्रव्यसंग्रहमें कहा है
‘‘सम्मद्दंसण’’ इत्यादि इसका अभिप्राय यह है कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र ये
तीनों ही व्यवहारनयकर मोक्षके कारण जानने, और निश्चयसे उन तीनोंमयी एक आत्मा ही
मोक्षका कारण है
।।१२।।
आगे निश्चयरत्नत्रयरूप परिणत हुआ निज शुद्धात्मा ही मोक्षका मार्ग है, ऐसा कहते हैं
भावार्थभेदरत्नत्रयात्मक व्यवहारमोक्षमार्ग साधक छे अने अभेदरत्नत्रयात्मक
निश्चयमोक्षमार्ग साध्य छे. ए प्रमाणे निश्चयव्यवहारमोक्षमार्गनो साध्यसाधकभाव सुवर्ण अने
सुवर्णपाषाणनी माफक जाणवो. (द्रव्यसंग्रहनी गाथा ३९ मां कह्युं पण छे केः‘‘सम्मद्दं सणणाणं
चरणं मोक्खस्स कारणं जाणे ववहार णिच्छयदो तत्तियमईओ णिओ अप्पा ।।’’ अर्थसम्यग्दर्शन,
सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्रने व्यवहारनयथी मोक्षनुं कारण जाणो. सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान
अने सम्यक्चारित्रमय निज आत्माने निश्चयथी मोक्षनुं कारण जाणो) १२.
हवे, निश्चयरत्नत्रयरूपे परिणमेलो निजशुद्धात्मा ज मोक्षमार्ग छे, एम कहे छेः
१ जुओ गुजराती पंचास्तिकाय गाथा १५९ थी १७२ फूटनोट सहित.
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योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-१२