Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 13 (Adhikar 2).

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१३९) पेच्छइ जाणइ अणुचरइ अप्पिं अप्पउ जो जि
दंसणु णाणु चरित्तु जिउ मोक्खहँ कारणु सो जि ।।१३।।
पश्यति जानाति अनुचरति आत्मना आत्मानं य एव
दर्शनं ज्ञानं चारित्रं जीवः मोक्षस्य कारणं स एव ।।१३।।
पेच्छइ इत्यादि पेच्छइ पश्यति जाणइ जानाति अणुचरइ अनुचरति केन कृत्वा अप्पिं
आत्मना कारणभूतेन कं कर्मतापन्नम् अप्पउ निजात्मानम् जो जि य एव कर्ता दंसणु णाणु
चरित्तु दर्शनज्ञानचारित्रत्रयं भवतीति क्रियाध्याहारः कोऽसौ भवति जिउ जीवः य एवाभेदनयेन
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रत्रयं भवतीति मोक्खहं कारणु निश्चयेन मोक्षस्य कारणं एक एव सो जि
स एव निश्चयरत्नत्रयपरिणतो जीव इति तथाहि यः कर्ता निजात्मानं मोक्षस्य कारणभूतेन
गाथा१३
अन्वयार्थ :[य एव ] जो [आत्मना ] अपनेसे [आत्मानं ] आपको [पश्यति ]
देखता है, [जानाति ] जानता है, [अनुचरति ] आचरण करता है, [स एव ] वही विवेकी
[दर्शनं ज्ञानं चारित्रं ] दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप परिणत हुआ [जीवः ] जीव [मोक्षस्य कारणं ]
मोक्षका कारण है
भावार्थ :जो सम्यग्दृष्टि जीव अपने आत्माको आपकर निर्विकल्परूप देखता है,
अथवा तत्त्वार्थश्रद्धानकी अपेक्षा चंचलता और मलिनता तथा शिथिलता इनका त्यागकर
शुद्धात्मा ही उपादेय है, इसप्रकार रुचिरूप निश्चय करता है, वीतराग स्वसंवेदनलक्षण ज्ञानसे
जानता है, और सब रागादिक विकल्पोंके त्यागसे निज स्वरूपमें स्थिर होता है, सो
निश्चयरत्नत्रयको परिणत हुआ पुरुष ही मोक्षका मार्ग है
ऐसा कथन सुनकर प्रभाकरभट्टने
भावार्थःजे आत्माथी निज आत्माने मोक्षना कारणरूपे देखे छे निर्विकल्प स्वरूपे
अवलोके छे अने तत्त्वार्थश्रद्धाननी अपेक्षाए चल, मलिन अने अगाढ दोषोने तजीने ‘एक शुद्ध
आत्मा ज उपादेय छे एवी रुचिरूपे निर्णय करे छे, मात्र निश्चय करे छे एटलुं ज नहि पण
वीतरागस्वसंवेदन जेनुं लक्षण छे एवा अभेदज्ञानथी जाणे छे-परिच्छेदन करे छे, मात्र
परिच्छेदन करे छे एटलुं ज नहि पण रागादि समस्त विकल्पोनो त्याग करीने अनुचरे छे
त्यांजनिजस्वरूपमां जस्थिर थाय छे ते निश्चयरत्नत्रयपरिणत पुरुष ज निश्चयमोक्षमार्ग छे.
१ पाठान्तरःभवतीति=भवति
अधिकार-२ः दोहा-१३ ]परमात्मप्रकाशः [ २२१