Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 30 (Adhikar 2).

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२६२ ]
योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-३०
ज्ञानिनां चारित्रमिति प्रतिपादयति
१५६) जाणवि मण्णवि अप्पु परु जो परभाउ चएइ
सो णिउ सुद्धउ भावडउ णाणिहिं चरणु हवेइ ।।३०।।
ज्ञात्वा मत्वा आत्मानं परं यः परभावं त्यजति
स निजः शुद्धः भावः ज्ञानिनां चरणं भवति ।।३०।।
जाणवि इत्यादि जाणवि सम्यग्ज्ञानेन ज्ञात्वा न केवलं ज्ञात्वा मण्णवि तत्त्वार्थश्रद्धान-
लक्षणपरिणामेन मत्वा श्रद्धाय कम् अप्पु परु आत्मानं च परं च जो यः कर्ता पर-भाउ
परभावं चएइ त्यजति सो स पूर्वोक्त : णिउ निजः सुद्धउ भावडउ शुद्धो भावो णाणिहिं चरण
हवेइ ज्ञानिनां पुरुषाणां चरणं भवतीति
तद्यथा वीतरागसहजानन्दैकस्वभावं स्वद्रव्यं तद्विपरीतं
स्वस्वरूपमां स्थिति थवी ते ज्ञानी जीवोनुं सम्यक्चारित्र छे, एम कहे छे.
भावार्थवीतराग सहज आनंद ज जेनो एक स्वभाव छे एवा स्वद्रव्यने अने
तेनाथी विपरीत परद्रव्यने संशय, विपर्यय अने अनध्यवसाय रहित एवा ज्ञान वडे जाणीने
अने शंकादि दोष रहित एवा सम्यक्त्व परिणामथी श्रद्धीने, माया, मिथ्यात्व अने
निदान ए त्रण शल्यथी मांडीने समस्त चिंताजाळना त्याग वडे, परमानंदरूप
त्यागसे जो निजस्वरूपमें निश्चलता होती है, वह ज्ञानी जीवोंके सम्यक्चारित्र है, ऐसा कहते
हैं
गाथा३०
अन्वयार्थ :सम्यग्ज्ञानसे [आत्मानं च परं ] आपको और परको [ज्ञात्वा ] जानकर
और सम्यग्दर्शनसे [मत्वा ] आप और परकी प्रतीति करके [यः ] जो [परभावं ] परभावको
[त्यजति ] छोड़ता है [सः ] वह [निजः शुद्धः भावः ] आत्माका निज शुद्ध भाव [ज्ञानिनां ]
ज्ञानी पुरुषोंके [चरणं ] चारित्र [भवति ] होता है
भावार्थ :वीतराग सहजानंद अद्वितीय स्वभाव जो आत्मद्रव्य उससे विपरीत
पुद्गलादि परद्रव्योंको सम्यग्ज्ञानसे पहले तो जानें, वह सम्यग्ज्ञान संशय, विमोह और विभ्रम
इन तीनोंसे रहित है
तथा शंकादि दोषोंसे रहित जो सम्यग्दर्शन है, उससे आप और परकी
श्रद्धा करे, अच्छी तरह जानके प्रतीति करे, और माया, मिथ्या, निदान इन तीन शल्योंको आदि
लेकर समस्त चिंता
समूहके त्यागसे निज शुद्धात्मस्वरूपमें तिष्ठे है, वह परम आनंद अतीन्द्रिय