अधिकार-२ः दोहा-३० ]परमात्मप्रकाशः [ २६३
परद्रव्यं च संशयविपर्ययानध्यवसायरहितेन ज्ञानेन पूर्वं ज्ञात्वा शङ्कादिदोषरहितेन सम्यक्त्व-
परिणामेन श्रद्धाय च यः कर्ता मायामिथ्यानिदानशल्यप्रभृतिसमस्तचिन्ताजालत्यागेन निजशुद्धात्म-
स्वरूपे परमानन्दसुखरसास्वादतृप्तो भूत्वा तिष्ठति स पुरुष एवाभेदेन निश्चयचारित्रं भवतीति
भावार्थः ।।३०।। एवं मोक्षमोक्षफलमोक्षमार्गादिप्रतिपादक द्वितीयमहाधिकारमध्ये निश्चयव्यवहार-
मोक्षमार्गमुख्यत्वेन सूत्रत्रयं षड्द्रव्यश्रद्धानलक्षणव्यवहारसम्यक्त्वव्याख्यानमुख्यत्वेन सूत्राणि चतुर्दश,
सम्यग्ज्ञानचारित्रमुख्यत्वेन सूत्रद्वयमिति समुदायेनैकोनविंशतिसूत्रस्थलं समाप्तम् ।
अथानन्तरमभेदरत्नत्रयव्याख्यानमुख्यत्वेन सूत्राष्टकं कथ्यते, तत्रादौ तावत् रत्नत्रय-
भक्त भव्यजीवस्य लक्षणं प्रतिपादयति —
१५७) जो भत्तउ रयण – त्तयहँ तसु मुणि लक्खणु एउ ।
अप्पा मिल्लिवि गुण-णिलउ तासु वि अण्णु ण झेउ ।।३१।।
सुखरसास्वादथी तृप्त थईने जे स्थिति रहे छे ते पुरुष ज अभेदथी (अभेदनयथी)
निश्चयचारित्र छे. ३०.
आ प्रमाणे मोक्ष, मोक्षफळ, मोक्षमार्गादिना प्रतिपादक बीजा महाधिकारमां
निश्चयव्यवहारमोक्षमार्गनी मुख्यताथी त्रण गाथासूत्रो, छ द्रव्योनी श्रद्धा जेनुं स्वरूप छे एवा
व्यवहारसम्यक्त्वना व्याख्याननी मुख्यताथी चौद गाथासूत्रो सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्रनी
मुख्यताथी बे सूत्रो ए प्रमाणे समुदायरूपे ओगणीस सूत्रोनुं स्थळ समाप्त थयुं.
त्यार पछी अभेद रत्नत्रयना व्याख्याननी मुख्यताथी आठ सूत्रो कहे छे, तेमां प्रथम
तो रत्नत्रयना भक्त भव्य जीवनुं लक्षण कहे छेः —
सुखरसके आस्वादसे तृप्त हुआ पुरुष ही अभेदनयसे निश्चयचारित्र है ।।३०।।
इसप्रकार मोक्ष, मोक्षका फल, मोक्षका मार्ग इनको कहनेवाले दूसरे महाधिकारमें
निश्चय व्यवहाररूप निर्वाणके पंथकी मुख्यतासे तीन दोहोंमें व्याख्यान किया, और चौदह
दोहोंमें छह द्रव्यकी श्रद्धारूप व्यवहारसम्यक्त्वका व्याख्यान किया, तथा दो दोहोंमें
सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्रका मुख्यतासे वर्णन किया । इसप्रकार उन्नीस दोहोंका स्थल पूरा
हुआ ।
आगे अभेदरत्नत्रयके व्याख्यानकी मुख्यतासे आठ दोहा – सूत्र कहते हैं, उनमेंसे पहले
रत्नत्रयके भक्त भव्यजीवके लक्षण कहते हैं —