अधिकार-२ः दोहा-३३ ]परमात्मप्रकाशः [ २६७
भावयन्तीत्यभिप्रायः ।।३२।।
अथात्मानं गुणस्वरूपं रागादिदोषरहितं ये ध्यायन्ति ते शीघ्रं नियमेन मोक्षं लभन्ते
इति प्रकटयति —
१५९) अप्पा गुणमउ णिम्मलउ अणुदिणु जे झायंति ।
ते पर णियमेँ परम-मुणि लहु णिव्वाणु लहंति ।।३३।।
आत्मानं गुणमय निर्मले अनुदिनं ये ध्यायन्ति ।
ते परं नियमेन परममुनयः लघु निर्वाण लभन्ते ।।३३।।
अप्पा इत्यादि । अप्पा आत्मानं कर्मतापन्नम् कथंभूतम् । गुणमउ गुणमयं
केवलज्ञानाद्यनन्तगुणनिर्वृत्तम् । पुनरपि कथंभूतम् । णिम्मलउ निर्मलं भावकर्मद्रव्य-
कर्मनोकर्ममलरहितं अणुदिणु दिनं दिनं प्रति अनुदिनमनवरतमित्यर्थः । इत्थंभूतमात्मानं जे
निश्चय नयथी ध्यावे छे-भावे छे. एवो अभिप्राय छे. ३२.
हवे, जेओ रागादिदोष रहित, अनंतगुणस्वरूप आत्माने ध्यावे छे तेओ नियमथी शीघ्र
मोक्षने पामे छे, एम प्रगट करे छेः —
भावार्थः — आ कथन सांभळीने अहीं प्रभाकरभट्ट पूछे छे के अहीं आपे कह्युं के
– जे शुद्ध आत्मानुं ध्यान करे छे ते ज मोक्ष पामे छे, बीजो कोई नहि; ज्यारे चारित्रसार
निजरूपको ही ध्यावते हैं ।।३२।।
आगे यह व्याख्यान करते हैं — जो अनंत गुणरूप रागादि दोष रहित निज आत्माको
ध्यावते हैं, वे निश्चयसे शीघ्र ही मोक्षको पाते हैं —
गाथा – ३३
अन्वयार्थ : — [ये ] जो पुरुष [गुणमय ] केवलज्ञानादि अनंत गुणरूप [निर्मले ]
भावकर्म, द्रव्यकर्म, नोकर्म मल रहित निर्मल [आत्मानं ] आत्माको [अनुदिनं ] निरंतर
[ध्यायंति ] ध्यावते हैं, [ते परं ] वे ही [परममुनयः ] परममुनि [नियमेन ] निश्चयकर
[निर्वाण ] निर्वाणको [लघु ] शीघ्र [लभंते ] पाते हैं ।
भावार्थ : — यह कथन श्रीगुरुने कहा, तब प्रभाकरभट्टने पूछा कि हे प्रभो; तुमने कहा
कि जो शुद्धात्माका ध्यान करते हैं, वे ही मोक्षको पाते हैं, दूसरा नहीं । तथा चारित्रसारादिक