Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration).

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२६८ ]
योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-३३
झायंति ये केचन ध्यायन्ति ते पर ते एव नान्ये णियमें निश्चयेन किंविशिष्टास्ते परम-मुणि
परममुनयः लहु लघु शीघ्रं लहंति लभन्ते किं लभन्ते णिव्वाणु निर्वाणमिति अत्राह
प्रभाकरभट्टः अत्रोक्तं भवद्भिर्य एव शुद्धात्मध्यानं कुर्वन्ति त एव मोक्षं लभन्ते न चान्ये
चारित्रसारादौ पुनर्भणितं द्रव्यपरमाणुं भावपरमाणुं वा ध्यात्वा केवलज्ञानमुत्पादयन्तीत्यत्र विषये
अस्माकं संदेहोऽस्ति
अत्र श्रीयोगीन्द्रदेवाः परिहारमाहः तत्र द्रव्यपरमाणुशब्देन द्रव्यसूक्ष्मत्वं
भावपरमाणुशब्देन भावसूक्ष्मत्वं ग्राह्यं न च पुद्गलद्रव्यपरमाणुः तथा चोक्तं सर्वार्थ-
सिद्धिटिप्पणिके द्रव्यपरमाणुशब्देन द्रव्यसूक्ष्मत्वं भावपरमाणुशब्देन भावसूक्ष्मत्वमिति तद्यथा
द्रव्यमात्मद्रव्यं तस्य परमाणुशब्देन सूक्ष्मावस्था ग्राह्या सा च रागादिविकल्पोपाधिरहिता तस्य
सूक्ष्मत्वं कथमिति चेत्, निर्विकल्पसमाधिविषयत्वेनेन्द्रियमनोविकल्पातीतत्वात् भावशब्देन
आदि ग्रंथोमां कह्युं छे के द्रव्यपरमाणु अने भावपरमाणुने ध्यावीने केवळज्ञान उत्पन्न करे छे
तो आ विषयमां मने संदेह छे.
अहीं, श्री योगीन्द्रदेव परिहार करे छेःत्यां ‘द्रव्यपरमाणु’, शब्दथी द्रव्यनुं सूक्ष्मपणुं
अने ‘भावपरमाणु’ शब्दथी भावनुं सूक्ष्मपणुं समजवुं पण पुद्गलद्रव्यपरमाणु न समजवो.
सर्वार्थसिद्धिनी टीकामां पण कह्युं छे के ‘द्रव्यपरमाणु’ शब्दथी द्रव्यनी सूक्ष्मता अने ‘भावपरमाणु’
शब्दथी भावनी सूक्ष्मता समजवी. ते आ प्रमाणे
द्रव्य अर्थात् आत्मद्रव्य समजवुं, तेनी
‘परमाणु’ शब्दथी सूक्ष्म अवस्था समजवी. ते सूक्ष्म अवस्था रागादि विकल्पोनी उपाधिथी रहित
छे.
शंका :ते सूक्ष्म कई रीते छे?
तेनुं समाधाान :निर्विकल्प समाधिनो विषय होवाथी अने इन्द्रिय, मनना विकल्पथी
ग्रंथोंमें ऐसा कहा है, जो द्रव्यपरमाणु और भावपरमाणुका ध्यान करें वे केवलज्ञानको पाते हैं
इस विषयमें मुझको संदेह है तब श्रीयोगीन्द्रदेव समाधान करते हैंद्रव्यपरमाणुसे द्रव्यकी
सूक्ष्मता और भावपरमाणुसे भावकी सूक्ष्मता कही गई है उसमें पुद्गल परमाणुका कथन नहीं
है तत्त्वार्थसूत्रकी सर्वार्थसिद्धि टीकामें भी ऐसा ही कथन है, द्रव्यपरमाणुसे द्रव्यकी सूक्ष्मता
और भावपरमाणुसे भावकी सूक्ष्मता समझना, अन्य द्रव्यका कथन न लेना यहाँ निज द्रव्य
तथा निज गुण पर्यायका ही कथन है, अन्य द्रव्यका प्रयोजन नहीं है द्रव्य अर्थात् आत्मद्रव्य
उसकी सूक्ष्मता वह द्रव्यपरमाणु कहा जाता है वह रागादि विकल्पकी उपाधिसे रहित है,
उसको सूक्ष्मपना कैसे हो सकता है ? ऐसा शिष्यने प्रश्न किया उसका समाधान इस तरह
हैकि मन इन्द्रियोंके अगोचर होनेसे सूक्ष्म कहा जाता है, तथा भाव (स्वसंवेदनपरिणाम)