Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 39 (Adhikar 2) Param Upashamabhavni Mukhyata.

< Previous Page   Next Page >


Page 280 of 565
PDF/HTML Page 294 of 579

 

background image
२८० ]
योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-३८
अत्थ(च्छ)इ इत्यादि अत्थ(च्छ)इ तिष्ठति किं कृत्वा तिष्ठति जित्तिउ कालु यावन्तं
कालं प्राप्य क्व तिष्ठति अप्प-सरूवि निजशुद्धात्मस्वरूपे कथंभूतः सन् णिलीणु निश्चयनयेन
लीनो द्रवीभूतो वीतरागनित्यानन्दैकपरमसमरसीभावेन परिणतः हे प्रभाकरभट्ट
इत्थंभूतपरिणामपरिणतं तपोधनमेवाभेदेन
संवर-णिज्जर जाणि तुहुँ संवरनिर्जरास्वरूपं जानीहि
त्वम्
पुनरपि कथंभूतम् सयल-वियप्प-विहीणु सकलविकल्पहीनं ख्यातिपूजालाभप्रभृति-
विकल्पजालावलीरहितमिति अत्र विशेषव्याख्यानं यदेव पूर्वसूत्रद्वयभणितं तदेव ज्ञातव्यम्
कस्मात् तस्यैव निर्जरासंवरव्याख्यानस्योपसंहारोऽयमित्यभिप्रायः ।।३८।। एवं मोक्षमोक्षमार्गमोक्ष-
फलादिप्रतिपादकद्वितीयमहाधिकारोक्तसूत्राष्टकेनाभेदरत्नत्रयव्याख्यानमुख्यत्वेन स्थलं समाप्तम्
अत ऊर्ध्वं चतुर्दशसूत्रपर्यन्तं परमोपशमभावमुख्यत्वेन व्याख्यानं करोति
तथाहि
१६५) कम्मु पुरक्किउ सो खवइ अहिणव पेसु ण देइ
संगु मुएविणु जो सयलु उवसम-भाउ करेइ ।।३९।।
भावार्थमुनि जेटलो काळ निज शुद्धात्मस्वरूपमां निश्चयथी लीन थईने द्रवीभूत
थईने एक (केवळ) वीतराग नित्यानंदरूप परमसमरसीभावे परिणमेलो रहे छे, तेटला काळसुधी
तुं आवा परिणामरूपे परिणमेला, संकल्प-विकल्पथी रहित ख्यातिपूजालाभआदिना विकल्पनी
जाळावलीथी रहित-तपोधनने संवरनिर्जरास्वरूप जाण.
जे विशेष व्याख्यान पूर्वना बे गाथासूत्रोमां कह्युं छे ते ज अत्रे जाणवुं, कारण के ते
ज संवर अने निर्जराना व्याख्याननो उपसंहार छे, एवो अभिप्राय छे. ३८.
आ प्रमाणे मोक्ष, मोक्षमार्ग अने मोक्षफळआदिना प्रतिपादक बीजा महाधिकारमां कहेल
आठ सूत्रोथी अभेदरत्नत्रयना व्याख्याननी मुख्यताथी (अंतर) स्थळ समाप्त थयुं.
(अपनी प्रतिष्ठा) लाभको आदि देकर विकल्पोंसे रहित उस मुनिको [संवरनिर्जरा ] संवर
निर्जरा स्वरूप [जानीहि ] जान
यहाँ पर भावार्थरूप विशेष व्याख्यान जो कि पहले दो सूत्रोंमें
कहा था, वही जानो इसप्रकार संवर निर्जराका व्याख्यान संक्षेपरूपसे कहा गया है ।।३८।।
इस तरह मोक्ष, मोक्षमार्ग और मोक्षफलका निरूपण करनेवाले दूसरे महाधिकारमें
आठ दोहासूत्रोंसे अभेदरत्नत्रयके व्याख्यानकी मुख्यतासे अंतरस्थल पूरा हुआ
आगे चौदह दोहोंमें परम उपशमभावकी मुख्यतासे व्याख्यान करते हैं