Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration).

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अधिकार-२ः दोहा-३९ ]परमात्मप्रकाशः [ २८१
कर्म पुराकृतं स क्षपयति अभिनवं प्रवेशं न ददाति
संगं मुक्त्वा यः सकलं उपशमभावं करोति ।।३९।।
कम्मु इत्यादि कम्मु पुरक्किउ कर्म पुराकृतं सो खवइ स एव
वीतरागस्वसंवेदनतत्त्वज्ञानी क्षपयति पुनरपि किं करोति अहिणव पेसु ण देइ अभिनवं
कर्म प्रवेशं न ददाति स कः संगु मुएविणु जो सयलु संगं बाह्याभ्यन्तरपरिग्रहं मुक्त्वा
यः कर्ता समस्तम् पश्चात्किं करोति उवसम भाउ करेइ जीवितमरणलाभालाभसुख-
दुःखादिसमताभावलक्षणं समभावं करोति तद्यथा स एव पुराकृतं कर्म क्षपयति नवतरं
संवृणोति य एव बाह्याभ्यन्तरपरिग्रहं मुक्त्वा सर्वशास्त्रं पठित्वा च शास्त्रफलभूतं वीतराग-
परमानन्दैकसुखरसास्वादरूपं समभावं करोतीति भावार्थः
तथा चोक्त म्‘‘साम्यमेवाद-
राद्भाव्यं किमन्यै र्ग्रन्थविस्तरैः प्रक्रियामात्रमेवेदं वाङ्मयं विश्वमस्य हि ।।’’ ।।३९।।
त्यार पछी चौद गाथा सूत्र सुधी परम उपशमभावनी मुख्यताथी व्याख्यान करे छे. ते
आ प्रमाणेः
भावार्थते ज पूर्वकृत कर्मोने खपावे छे अने नवां कर्मोने रोके छे के जे
बाह्य-अभ्यंतर परिग्रहने छोडीने अने सर्व शास्त्र भणीने शास्त्रना फळभूत एक (केवळ)
वीतराग परमानंदरूप सुखरसना आस्वादरूप समभावने करे छे. कह्युं पण छे के
‘‘साम्यमेवादराद्भाव्यं किमन्यैैर्ग्रन्थविस्तरैः प्रक्रियामात्रमेवेदं वाङ्मयं विश्वमस्य हि ।।’’ [अर्थएक
समभाव ज आदरथी भाववा योग्य छे, अन्य ग्रंथोना विस्तारोथी शुं? आ समस्त
गाथा३९
अन्वयार्थ :[सः ] वही वीतराग स्वसंवेदन ज्ञानी [पुराकृतं कर्म ] पूर्व उपार्जित
कर्मोंको [क्षपयति ] क्षय करता है, और [अभिनवं ] नये कर्मोंको [प्रवेशं ] प्रवेश [न
ददाति ] नहीं होने देता, [यः ] जो कि [सकलं ] सब [संगं ] बाह्य अभ्यंतर परिग्रहको
[मुक्त्वा ] छोड़कर [उपशमभावं ] परम शांतभावको [करोति ] करता है, अर्थात् जीवन,
मरण, लाभ, अलाभ, सुख, दुःख, शत्रु, मित्र, तृण, कांचन इत्यादि वस्तुओंमें एकसा परिणाम
रखता है
भावार्थ :जो मुनिराज सकल परिग्रहको छोड़कर सब शास्त्रोंका रहस्य जानके
वीतराग परमानंद सुखरसका आस्वादी हुआ समभाव करता है, वही साधु पूर्वके कर्मोंका क्षय
करता है, और नवीन कर्मोंको रोकता है
ऐसा ही कथन पद्मनंदिपच्चीसीमें भी है
‘‘साम्यमेव’’ इत्यादि इसका तात्पर्य यह है, कि आदरसे समभावको ही धारण करना चाहिये,